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राहुल के हाथों अन्ना का अनशन तुड़वाने की थी योजना?
अन्ना आंदोलन को करीब से देखने वाले पत्रकार अनुरंजन झा ने इसके कई अनछुए अनजाने पहलुओं को पहली बार सामने लाते हुए एक किताब लिखी है - रामलीला मैदान। इसी किताब से प्रस्तुत है वह हिस्सा, जहाँ अनुरंजन जिक्र कर रहे हैं कि कई सारे ऐसे समाज-सेवी और बुद्धिजीवी जो आंदोलन के शुरुआत के दिनों में मूवमेंट में दिलचस्पी नहीं ले रहे थे या फिर धुर विरोधी थे, लेकिन एक समय वे एक-एक कर मंच पर आने लगे थे। क्या उनका आना अनायास था या फिर सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था...
व्यापमं बाहर नहीं, अन्दर है!
कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
सब तरफ व्यापमं ही व्यापमं है! वह व्यापक है, यहाँ, वहाँ, जहाँ नजर डालो, वहाँ व्याप्त है! साहब, बीबी और सलाम, ले व्यापमं के नाम, दे व्यापमं के नाम! व्यापमं देश में भ्रष्टाचार का नया मुहावरा है, जिसमें कोई एक, दो, दस-बीस, सौ-पचास का भ्रष्टाचारी गिरोह नहीं, हजारों हजार भ्रष्टाचारी हैं।
क्या हो पायेगा ‘आप’ का पुनर्जन्म?
क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :
तो क्या ‘आप’ का पुनर्जन्म हो सकता है? दिल्ली में चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। सबसे बड़ा सवाल यही है, ‘आप’ का क्या होगा? केजरीवाल या मोदी? दिल्ली किसका वरण करेगी?
क्या-क्या सिखा सकती है एक झाड़ू?
क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :
तो झाड़ू अब ‘लेटेस्ट’ फैशन है! बड़े-बड़े लोग एक अदना-सी झाड़ू के लिए ललक-लपक रहे हैं! फोटो छप रही है! धड़ाधड़! यहाँ-वहाँ हर जगह झाड़ू चलती दिखती रही है!