Sunday, June 8, 2025
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बच्चों को मिले विश्वास और भरोसा

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मैंने बताया था न कि घर की सफाई में मेरे हाथ बहुत सी पुरानी यादें लगीं। 

यादों के उसी पिटारे से मैं आपके लिए कल अपनी काठमांडू यात्रा की कहानी ले कर आया था। मैंने आपको कल ही बताया था कि यादों के उन्हीं पुलिंदे में मेरे अमेरिका प्रवास के दौरान लिखे कुछ लेख हाथ लगे। इनमें से कुछ तो मैंने अमेरिका से दिल्ली फैक्स के जरिए Sanjaya Kumar Singh को भेजे थे और वो यहाँ जनसत्ता में छपे भी थे। बात अमेरिका के न्यूयार्क शहर में ट्वीन टावर पर हुए हमले के दिन की है। 

भस्मासुर

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

सुबह से दस बार लिख कर मिटा चुका हूँ। कई बार सोचा जिन्दगी की कहानी लिखूँ, लेकिन आधी रात को फ्रांस में हुए धमाकों से मन बहुत विचलित हो रहा था। मुझे याद है कि उस दिन मैं अमेरिका में ही था, जब सुबह-सुबह दो विमान न्यूयार्क की जुड़वाँ ऊँची इमारतों में समा गये थे और दस हजार जिन्दगी देखते-देखते खत्म हो गयीं थीं। उस दिन भी मन बहुत विचलित हुआ था। 

प्यार का बँटवारा

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

दो दिन पहले मेरे पास एक मिस्त्री का फोन आया था। मैं उसे जानता था। तीन-चार साल पहले उसने मेरे घर में रंगाई-पुताई का काम किया था और तभी अपना नंबर मुझे दे गया था। मिस्त्री को पता था कि मैं पत्रकार हूँ। एक बार वो काम करके चला गया तो फिर मेरा उससे कोई संपर्क नहीं रहा।

बेटियों से उजाला होता है

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

अपने एक परिचित का हालचाल पूछने के लिए मुझे कल दिल्ली के मैक्स अस्पताल में जाना पड़ा। वहाँ ऑपरेशन थिएटर के पास मैं अपने परिचित के बाहर आने का इंतजार कर रहा था। एक-एक कर कई मरीज स्ट्रेचर पर बाहर लाये जा रहे थे। मैं सभी मरीजों और उनके परिजनों को गौर से देखता। जैसे ही कोई मरीजा बाहर आता, उनके परिजनों के चेहरे खिल उठते। डॉक्टर बाहर आकर पूछता कि क्या आप फलाँ के साथ हैं?

गरम हवाओं ने पूरब की शीतलता में उष्णता भर दी

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

“गरम हवाओं ने पूरब की शीतलता में कब और कैसे उष्णता भर दी, हम देखते रह गये…”

मैंने कल यहाँ फेसबुक पर अपनी पोस्ट में लिखा था कि कैसे मैं रेडियो मिर्ची के एक शो में गया, तो रेडियो जॉकी शशि ने मुझे बताया कि एक बुजुर्ग दंपति, जिनके तीनों बच्चे अमेरिका में सेटल हो गये हैं, पटना में अकेले जिन्दगी गुजार रहे हैं।

आगे बढ़ते हम, पीछे छूटते अपने

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

मेरे पड़ोस वाली रेखा दीदी की शादी मेरी जानकारी में सबसे पहले चाँद के पास वाले ग्रह के एक प्राणी से हुई थी।

एक अमेरिका है और एक भारत

नदीम एस अख्तर, वरिष्ठ पत्रकार :

अमेरिका ओसामा बिन लादेन को मारने के अपने सबसे खुफिया अभियान के दस्तावेजों को सार्वजनिक कर देता है। उसे जनता के सामने ला देता है।

थ्रिल जिंदगी में तलाश करें, मौत में नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

 “कुछ हिल रहा है। लग रहा है चक्कर आ रहा है। अरे ये देखो ऊपर लटका पंखा भी हिल रहा है। हाँ, हाँ दीवार पर टंगी फोटो भी हिल रही है। भागो, भूकम्प आया है।” हमारे देश में भूकम्प का इतना अनुभव सबके पास है। उसके बाद शुरू होता है टीवी पर खबरों का खेल। पानी की हिलती हुई बोतल, हिलता हुआ पंखा, भागते हुए लोगों को दिखाने की होड़ मच जाती है। कुछ देर में हमारे पास भूकम्प से जुड़ी तस्वीरें आने लगती हैं और हम दिखाने लगते हैं, गिरी हुई इमारतें, उसमें फंसे हुए लोग, मलबों में दबे हुए लोग, चीख-पुकार, करुण-क्रंदन। 

कल नेपाल और भारत में भूकम्प से धरती हिली। वही सब हुआ, जिसे मैंने बयाँ किया है।

पंद्रह साल पहले गुजरात में ऐसा ही भूकम्प आया था। तब मैं जी न्यूज में रिपोर्टर था।

कब आयेगा बदलाव

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

कल मुझे मेरी सोसायटी का माली मिल गया। उसके हाथों में ढेरों किताबें थीं। दुआ सलाम के बाद उसने मुझसे बीस हजार रुपये बतौर उधार मांगे। 

जाहिर है मेरी जिज्ञासा ये जानने में थी कि आखिर अचानक इतने रुपयों की उसे क्या जरूरत आ पड़ी।

जैसा संस्कार दोगे वैसा पाओगे

संजय सिन्हा : 

पता नहीं फेसबुक पर किसने लिखा, लेकिन जिसने भी लिखा ये चुटकुला नहीं था और अगर ये चुटकुला था तो बेहद मार्मिक था।

लिखने वाले ने तो लिख दिया कि एक बूढ़ा आदमी अपने फोन को लेकर बाजार में गया, ये दिखाने के लिए कि उसके फोन में क्या खराबी है, ये पता चल जाए।

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