Tag: आतंकवादी
प्रशांत भूषण ऐसे ईव-टीजर, जो लोगों की आत्मा तक नोंच डालते हैं!
तेरे ‘मासूम’ सवालों से हैरान हूँ मैं

राजीव रंजन झा :
मध्य प्रदेश की भोपाल जेल से भागे आठ आतंकवादियों की मुठभेड़ में हुई मौत के बाद तमाम राजनीतिक दल और कथित रूप से उदार विचारधारा वाले लोगों की तरफ से सवालों की बौछार शुरू हो गयी है। सवाल पूछने वालों की नीयत चाहे जो भी हो, मध्य प्रदेश सरकार को इन सवालों के जवाब जरूर देने चाहिए।
दुश्मन को मारने से पहले अपनी चारदीवारी को मजबूत करो

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
हो सकता है आप में से कुछ लोग 11 सितंबर 2001 को न्यूयार्क में हुए आतंकवादी हमले के चश्मदीद रहे हों। हो सकता है बहुत से लोग न रहे हों। लेकिन मैं रहा हूँ। मैंने 11 सितंबर 2001 में अमेरिका पर हुए आतंकवादी हमले को बहुत करीब देखा और जिया है। मैं चश्मदीद हूँ उस हमले का और हमले में मरे दस हजार लोगों के शव का।
इस गर्जन-तर्जन से क्या हासिल?

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
जब पूरा पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान कश्मीर में आग लगाने की कोशिशें में जुटा है तब हमारे गृहमंत्री राजनाथ सिंह पाकिस्तान क्यों गये, यह आज भी अबूझ पहेली है। वहाँ हुयी उपेक्षा, अपमान और भोजन छोड़ कर स्वदेश आ कर उनकी ‘सिंह गर्जना’ से क्या हासिल हुआ है? क्या उनके इस प्रवास और आक्रामक वक्तव्य से पाकिस्तान कुछ भी सीख सका है? क्या उसकी सेहत पर इससे कोई फर्क पड़ा है? क्या उनके पाकिस्तान में दिए गए व्याख्यान से पाकिस्तान अब आतंकवादियों की शहादत पर अपना विलाप बंद कर देगा? क्या पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान भारत के प्रति सद्भाव से भर जाएगा और कश्मीर में आतंकवादियों को भेजना कर देगा? जाहिर तौर पर इसमें कुछ भी होने वाला नहीं है।
पठानकोट हमला : मोदी सरकार पर सवाल

राजेश रपरिया :
पठानकोट एयरबेस पर पाकिस्तानी आतंकवादियों के खौफनाक हमले से पहली बार मोदी सरकार के कामकाज, तत्परता, सतर्कता को लेकर सार्वजनिक रूप से सवाल उठ खड़े हुए हैं, मोदी की टीम इंडिया के परखच्चे उड़ गये हैं। आतंकवादी कम से कम 48 घंटे पठानकोट में स्वच्छंद घूमते रहे और सुरक्षा तंत्र हाथ पर हाथ धरे अपनी माँद में बैठा प्रतीक्षा करता रहा।
इन बतछुरियों की काट ढूँढिए!

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
पाकिस्तान है कि मानता नहीं! मुँह में बात, बगल में छुरी! इधर बात, उधर छुरी! हम बतकही करते हैं, पाकिस्तान बतछुरी करता है! हर बार यही होता है. इस बार भी यही हुआ। वहाँ उफा में बात हुई। यहाँ बधाईबाजों ने महिमा गान शुरू किया। इधर अभी साझा बयान पर इतराने की अँगड़ाई उठी ही थी कि उधर जवाब में सीमा पार से बन्दूकों की आतिशबाजी चल पड़ी। कहीं कोई कोर-कसर बाकी न रह जाये, कहीं बातचीत का 'असली' नतीजा समझने में कोई गलतफहमी न रह जाये, इसलिए उधर से सशरीर कई आतंकवादी तोहफे भी फटाफट भेज दिये गये। पूरे सबूतों के साथ कि वे सारे के सारे पाकिस्तानी ही हैं। लो, कर लो बात!
चुप्पी

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
सर्दी के दिन थे। बुआ आँगन में चटाई बिछा कर अपने पोते को सरसों का तेल लगा रही थी। हम ढेर सारे बच्चे वहीं छुपन छुपाई खेल रहे थे।