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तुम घटिया, तुम्हारी साड़ी घटिया

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
निवेदन-यह व्यंग्य मूलत चालीस के उस पार की आदरणीयाओं के लिए है।
ऐसी कल्पना उभरती है कि जब परमात्मा ने पूरी सृष्टि बना ली होगी, तमाम रंग बना लिये होंगे, तो तब मिसेज परमात्मा को बुलाकर वे रंग दिखाये होंगे। परमात्मा ने मिसेज परमात्मा से कहा होगा बताओ इन रंगों का क्या करें। मिसेज परमात्मा ने निश्चित तौर पर कहा होगा-इतने सारे रंगों की साड़ियाँ होनी चाहिए। सिर्फ इतने ही रंगों की क्यों, इन रंगों को मिक्स कर दिया जाये, फिर जितने किस्म के शेड बनें, उन सबकी साड़ियाँ होनी चाहिए।
हार्ट का नया माडल

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
और, और, और, और लीजिये, पुराने भले ही अभी सिर्फ तीन महीने ही पुराना क्यों ना हो, नया ले ही लीजिये।
फेसबुक के इस्तेमाल

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
गुजरात की मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया पर इस्तीफा दिया। नेता चुन कर आता है जनता द्वारा, पर मुक्ति चाहता है फेसबुक द्वारा। फेसबुक के यूँ कई इस्तेमाल हैं- इस पर कविता, इश्क और इस्तीफा कुछ भी किया जा सकता है। यूँ कई लोग इस्तीफा और इश्क में असमर्थ होते हैं, तो फेसबुक पर कविता का अंबार दिखायी देता है।
अकिंचन देह में फास्फोरस

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
डाक्टर गंभीर किस्म के मेडिकल टेस्टों के बोल दे, तो दिमाग एक खास दशा में चला जाता है। गंभीर मेडिकल टेस्टों की डाक्टर बोल दे, तो मैं एकदम सन्यास मोड में चला जाता हूँ। देह नश्वर है, अकिंचन है, क्या रखा है। स्वस्थ रह कर ही कौन से तीर मार लेंगे, बीस-तीस साल और जी जायेंगे। सीरियस बीमारी हुई, बीस-तीस साल पहले टें बोल लेंगे। इस किस्म के निहायत जीवन-निरपेक्ष विचार आने लगते हैं।
एडवेंचर टूरिज्म के पैकेज

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
सिकंदर जब भारत फतह के लिए आया था, तो दिल्ली से वापस हो लिया था, पता है क्यों, दिल्ली में नदी और नाली का फर्क बाऱिश में खत्म हो जाता है। सिकंदर ने अपने सेनापति से कहा-झेलम, चिनाब जैसी नदियाँ जब हम पार करते हैं, तो हमें यह पता होता है कि ये नदियाँ हैं। दिल्ली में जिसे सड़क समझो, वह नाला निकलता है, जिसे नाला समझो, वह नदी निकलती है। जिसे नदी समझो वह कूड़े का ढेर निकलता है। दिल्ली बहुतै कनफ्यूजिंग है भाई।
पोकीमान @ अरहर डाट काम

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
पोकीमान गो गेम ने मार मचायी हुई है। जिस देश में नौजवानों को धूर्त-बदमाश नेताओं, अरहर के काला-बाजारियों को पकड़ने के लिए निकलना चाहिए, वहाँ नौजवानों का जत्था पोकीमान को पकड़ने निकल रहा है। मोबाइल की स्क्रीन पर नजरें गड़ाये आपके आसपास कोई नौजवान पोकीमान के चक्कर में इधर-उधर जा रहा होगा।
जेठानी को जलाना है

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
सरकार चाहती है कि सोने में भारतीय लेडीज की दिलचस्पी कम हो। इसलिए इन दिनों गोल्ड बांड के इश्तिहार आ रहे हैं, आशय यह कि गोल्ड के चक्कर में ना पड़ों कुछ ब्याज कमा लो। सोना सरकार को दे दो, वहाँ ज्यादा काम आयेगा। यह चाहना कुछ इस किस्म का चाहना है कि मानो महाराष्ट्र में शिव सेना के उध्दव ठाकरे चीफ मिनिस्टर कुर्सी की चाह खत्म कर दें। सोने को लेकर सरकार की योजना है कि पुराने सोने को लेकर बांड जारी कर दिये जायें और पब्लिक को प्रोत्साहित किया जाये कि सोना ना खरीदो- सोने के बांड खरीद लो, उस पर ब्याज भी मिलेगा।
एटीएम और औकात

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
एटीएम औकात पहचानता है-उस दिन मैंने पाँच सौ रुपये एटीएम से निकाले, तो सौ-सौ के पाँच नोट निकले। यह नहीं कि एटीएम पाँच सौ का नोट निकाल देता। एटीएम सोचता है कि पाँच सौ रुपये के लिए मेरे होल में आया यह बंदा, एक झटके में ही पाँच सौ खर्चने की औकात और जरूरत ना होगी इसकी, सौ-सौ के नोट ही देना बेहतर। वरना पाँच सौ के छुट्टे कराने में और परेशान होगा।
अपना लाइक उर्फ अपनी लाइफ

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
किसी वेबसाइट से खरीदारी करनेवाले जानते हैं कि कोई आइटम वहाँ से खरीदकर लौटना आसान नहीं होता, खरीदारी के फौरन बाद वेबसाइट बताती है कि जिन्होने आप जैसे ये सामान खऱीदा था, उन्होने ये, ये और ये भी खरीदा था, ये, ये आइटम लाइक किये थे।
वेनिस जैसा फील

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
एक मित्र वेनिस होकर आयी थीं, फोटू दिखा रही थीं-पूरा शहर पानी में ही बसा हुआ है।