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कुछ बातें ‘भारत माता की जय’ न बोलने वालों से !
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
देश की आजादी के सात दशक बाद वंदेमातरम् गाएँ या न गाएँ, ‘भारत माता की जय’ बोलें या न बोलें इस पर छिड़ी बहस ने हमारे राजनीतिक विमर्श की नैतिकता और समझदारी दोनों पर सवाल खड़े कर दिये हैं। आजादी के दीवानों ने जिन नारों को लगाते हुए अपना सर्वस्व निछावर किया, आज वही नारे हमारे सामने सवाल की तरह खड़े हैं। देश की आजादी के इतने वर्षों बाद छिड़ी यह निरर्थक बहस कई तरह के प्रश्न खड़े करती है। यह बात बताती है राजनीति का स्तर इन सालों में कितना गिरा है और उसे अपने राष्ट्रीय स्वाभिमान से समझौता करने में भी गुरेज नहीं है। लोकतंत्र इस मामले में हमें इतना दयनीय बना देगा, यह सोच कर दुख होता है।
जुबाँ से दिये जख्म जिन्दगी भर नहीं भरते
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरी एक परिचित किसी को कुछ भी कह सकती हैं। वो स्पष्टवादी हैं। उन्हें किसी को कुछ भी कह देने में कोई गुरेज नहीं है।
वो कोई भी बात कहने के बाद कहती हैं, “माफ कीजिएगा, मैं साफ बोलती हूँ।