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राजनीति बतर्ज मुख्तार अन्सारी

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :
पार्टियाँ न दाग देखती हैं, न धब्बा, बस बाहुबल, धनबल, धर्म, जाति के समीकरणों की गोटियाँ बिठाती हैं। आपको हैरानी होगी जान कर कि अभी उत्तराखंड में मुख्यमंत्री हरीश रावत ने पूरा जोर लगा कर बीजेपी के जिस नेता को काँग्रेस का टिकट दिलवाया है, उसके खिलाफ काँग्रेस की ही सरकार ने 2012 में साम्प्रदायिक उन्माद भड़काने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया था! बीजेपी भी पीछे नहीं है।
‘सिविल कोड नहीं, तो वोट नहीं!’

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :
संघ के एक बहुत पुराने और खाँटी विचारक हैं, एम.जी. वैद्य। उनका सुझाव है कि जो लोग यूनिफार्म सिविल कोड को न मानें, उन्हें मताधिकार से वंचित कर देना चाहिए। खास तौर से उनके निशाने पर हैं मुसलमान और आदिवासी। उन्होंने अपने एक लेख में साफ-साफ लिखा है कि 'जो लोग अपने धर्म या तथाकथित आदिवासी समाज की प्रथाओं के कारण यूनिफार्म सिविल कोड को न मानना चाहें, उनके लिए विकल्प हो कि वह उसे न मानें। लेकिन ऐसे में उन्हें संसद और विधानसभाओं में वोट देने का अधिकार छोड़ना पड़ेगा।'
कैसे सुलझे गुत्थी पाकिस्तान की?

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :
जो सबसे आसान काम था, वही हमने अब तक नहीं किया। हमने पाकिस्तान को व्यापार के लिए 'एमएफएन' यानी 'मोस्ट फेवर्ड नेशन' का दर्जा दे रखा है। इसे हमारी सरकार आसानी से वापस ले सकती है। लेकिन फिलहाल सरकार ने ऐसा नहीं किया।
चुन लीजिए, आपको क्या चाहिए!

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :
पहला सवाल : अगर किसी सरकारी कर्मचारी, अफसर या न्यायिक अधिकारी को किसी अपराध के लिए सजा मिलती है, तो वह तो अपनी नौकरी पर कभी वापस नहीं रखा जा सकता, तो फिर ऐसा ही पैमाना राजनेताओं के लिए क्यों नहीं अपनाया जाना चाहिए? सजायाफ्ता नेता पर आजीवन रोक क्यों नहीं लगनी चाहिए?
तीन तलाक की नाजायज जिद!

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के तर्क बेहद हास्यास्पद है। एक तर्क यह है कि 'पुरुषों में बेहतर निर्णय क्षमता होती है, वह भावनाओं पर क़ाबू रख सकते हैं। पुरुष को तलाक़ का अधिकार देना एक प्रकार से परोक्ष रूप में महिला को सुरक्षा प्रदान करना है। पुरुष शक्तिशाली होता है और महिला निर्बल। पुरुष महिला पर निर्भर नहीं है, लेकिन अपनी रक्षा के लिए पुरुष पर निर्भर है।' बोर्ड का एक और तर्क देखिए। बोर्ड का कहना है कि महिला को मार डालने से अच्छा है कि उसे तलाक़ दे दो।
‘आप’ की झाड़ू, ‘आप’ पर!

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :
आम आदमी पार्टी का बनना देश की राजनीति में एक अलग घटना थी। वह दूसरी पार्टियों की तरह नहीं बनी थी। बल्कि वह मौजूदा तमाम पार्टियों के बरअक्स एक अकेली और इकलौती पार्टी थी, जो इन तमाम पार्टियों के तौर-तरीकों के बिलकुल खिलाफ, बिलकुल उलट होने का दावा कर रही थी। उसका दावा था कि वह ईमानदारी और स्वच्छ राजनीतिक आचरण की मिसाल पेश करेगी। इसलिए 'आप' के प्रयोग को जनता बड़ी उत्सुकता देख रही थी कि क्या वाकई 'आप' राजनीति में आदर्शों की एक ऐसी लकीर खींच पायेगी कि सारी पार्टियों को मजबूर हो कर उसी लकीर पर चलना पड़े।
काँग्रेस : बस ‘टीना’ में ही जीना!

क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :
प्रशान्त किशोर ने काँग्रेस को एक 'क्विक फिक्स' फार्मूला दिया है। ब्राह्मणों को पार्टी के तम्बू में वापस लाओ। फार्मूला सीधा है। जब तक ब्राह्मण काँग्रेस के साथ नहीं आते, तब तक उत्तर प्रदेश में मुसलमान भी काँग्रेस के साथ नहीं आयेंगे। क्योंकि मुसलमान तो उधर ही जायेंगे, जो बीजेपी के खिलाफ जीत सके। मायावती के कारण अब दलित तो टूटने से रहे। तो कम से कम मुसलमान और ब्राह्मण तो काँग्रेस के साथ आयें! हालाँकि यह कोई नया फार्मूला नहीं है। उत्तर प्रदेश में तो चाय की चौपालों पर चुस्की मारने वाला हर बन्दा जानता है कि 2007 में ठीक इसी दलित-ब्राह्मण-मुसलमान की 'सोशल इंजीनियरिंग' से मायावती ने कैसे बहुमत पा लिया था।
कितनी गाँठों के कितने अजगर?

क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :
मन के अन्दर, कितनी गाँठों के कितने अजगर, कितना जहर? ताज्जुब होता है! जब एक पढ़ी-लिखी भीड़ सड़क पर मिनटों में अपना उन्मादी फैसला सुनाती है, बौरायी-पगलायी हिंसा पर उतारू हो जाती है। स्मार्ट फोन बेशर्मी से किलकते हैं, और उछल-उछल कर, लपक-लपक कर एक असहाय लड़की के कपड़ों को तार-तार किये जाने की 'फिल्म' बनायी जाने लगती है। यह बेंगलुरू की ताजा तस्वीर है, बेंगलुरू का असली चेहरा है, जो देश ने अभी-अभी देखा, आज के जमाने की भाषा में कहें तो यह बेंगलुरू की अपनी 'सेल्फी' है, 'सेल्फी विद् द डॉटर!'
केजरीवाल अगर ऐसे सरकार चलायें, तो….?

क़मर वहीद नक़वी :
आम आदमी गजब चीज है! किसी को भनक तक नहीं लगने देता कि वह क्या करने जा रहा है। वरना किसे अंदाज था कि सिर्फ नौ महीनों में ही दिल्ली घर घर मोदी से घर घर मफलर में बदल जायेगी!
सेकुलर घुट्टी क्यों पिला गये ओबामा?

क़मर वहीद नक़वी :
आधुनिक सेकुलरिज्म और लोकतंत्र एक दूसरे के पूरक विचार हैं। सारी दुनिया में लोगों को अब दो बातें समझ में आती जा रही हैं। एक यह कि आर्थिक विकास के लिए स्वस्थ लोकतंत्र बड़ा जरूरी है। एक शोध के मुताबिक लोकताँत्रिक शासन व्यवस्था अपनाने से देशों की जीडीपी में अमूमन एक प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो गयी! और जो देश लोकतंत्र से विमुख हुए, वहाँ इसका असर उलटा हुआ और आर्थिक विकास की गति धीमी हो गयी।