Sunday, September 8, 2024
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सभ्यता का रहस्य

प्रेमचंद : 

यों तो मेरी समझ में दुनिया की एक हजार एक बातें नहीं आती-जैसे लोग प्रात:काल उठते ही बालों पर छुरा क्यों चलाते हैं ? क्या अब पुरुषों में भी इतनी नजाकत आ गयी है कि बालों का बोझ उनसे नहीं सँभलता ? एक साथ ही सभी पढ़े-लिखे आदमियों की आँखें क्यों इतनी कमजोर हो गयी है ? दिमाग की कमजोरी ही इसका कारण है या और कुछ? लोग खिताबों के पीछे क्यों इतने हैरान होते हैं ? इत्यादि-लेकिन इस समय मुझे इन बातों से मतलब नहीं। मेरे मन में एक नया प्रश्न उठ रहा है और उसका जवाब मुझे कोई नहीं देता।

खुद को पहचानो

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मेरी पड़ोस की एक दीदी की शादी बहुत कम उम्र में हो गयी थी। 

अब नहीं सोचेंगे, तो कब सोचेंगे?

कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार :

हाशिमपुरा और भी हैं ! 1948 से लेकर 2015 तक। कुछ मालूम, कुछ नामालूम ! जगहें अलग-अलग हो सकती हैं। वजहें अलग-अलग हो सकती हैं। घटनाएँ अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन चरित्र लगभग एक जैसा।

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