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समस्या
प्रेमचंद :
मेरे दफ्तर में चार चपरासी हैं। उनमें एक का नाम गरीब है। वह बहुत ही सीधा, बड़ा आज्ञाकारी, अपने काम में चौकस रहने वाला, घुड़कियाँ खाकर चुप रह जानेवाला यथा नाम तथा गुण वाला मनुष्य है। मुझे इस दफ्तर में साल-भर होते हैं, मगर मैंने उसे एक दिन के लिए भी गैरहाजिर नहीं पाया।
गरीबी सचमुच अभिशाप है
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
"डाक्टर साहब मेरा बेटा ठीक होगा कि नहीं, सच-सच बताइए।"
प्लीज, कम इनफोर्मेशन दें
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
स्नैपडील, फ्लिपकार्ट, एमेजन, मायंत्रा के आनलाइन शापिंग के जमाने में घणी फँसावटें हैं।
नशा
प्रेमचंद :
ईश्वरी एक बड़े जमींदार का लड़का था और मैं एक गरीब क्लर्क का, जिसके पास मेहनत-मजूरी के सिवा और कोई जायदाद न थी। हम दोनों में परस्पर बहसें होती रहती थीं। मैं जमींदारी की बुराई करता, उन्हें हिंसक पशु और खून चूसने वाली जोंक और वृक्षों की चोटी पर फूलने वाला बंझा कहता। वह जमींदारों का पक्ष लेता, पर स्वभावत: उसका पहलू कुछ कमजोर होता था, क्योंकि उसके पास जमींदारों के अनुकूल कोई दलील न थी।
दलित हो तो दावत खिलाओ
विकास मिश्रा, आजतक
रामभरोसे दरवाजा खोलो, मैं नेता सुर्तीलाल।
रामभरोसे - नेताजी आज गरीब के घर का रास्ता कैसे भूल गये।
शुक्रिया सीसा, दुनिया को आइना दिखाने के लिए!
कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार :
कहानी बिलकुल फिल्मी लगती है, लेकिन फिल्मी है नहीं। कहानी बिलकुल असली है।