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बासी भात में खुदा का साझा
प्रेमचंद :
शाम को जब दीनानाथ ने घर आकर गौरी से कहा, कि मुझे एक कार्यालय में पचास रुपये की नौकरी मिल गई है, तो गौरी खिल उठी। देवताओं में उसकी आस्था और भी दृढ़ हो गयी। इधर एक साल से बुरा हाल था। न कोई रोजी न रोजगार। घर में जो थोड़े-बहुत गहने थे, वह बिक चुके थे। मकान का किराया सिर पर चढ़ा हुआ था। जिन मित्रों से कर्ज मिल सकता था, सबसे ले चुके थे। साल-भर का बच्चा दूध के लिए बिलख रहा था। एक वक्त का भोजन मिलता, तो दूसरे जून की चिन्ता होती। तकाजों के मारे बेचारे दीनानाथ को घर से निकलना मुश्किल था।
आज की शिक्षा व्यवस्था
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
जब मैं छोटा था, माँ मेरे लिए पैंट और कमीज हाथ वाली सिलाई मशीन से घर पर खुद सिला करती थी। वो हाथ और उँगलियों से ये नाप लिया करती थी कि मेरे लिए कितने कपड़ों की जरूरत है और उसकी सिलाई एकदम शानदार हुआ करती थी।
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