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रोशनी का चिराग
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज मेरी कहानी पढ़ने से पहले आप वीडियो पर क्लिक करके इस बच्ची के साथ अपना एक रिश्ता कायम कर लीजिएगा। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि बच्ची का नाम शिवानी है या संध्या। पर फर्क पड़ता है उन लोगों की कोशिशों से जो ऐसे बच्चों की आवाज बनने को तत्पर होते हैं।
प्यार दो, प्यार लो
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
जबलपुर जाने का मतलब है कहानियों के संसार की यात्रा पर निकलना। एक कहानी खत्म हुई नहीं कि दूसरी शुरू। अब वहाँ कदम संस्था वालों ने इतने पेड़ लगा दिए हैं कि प्रकृति जबलपुर की मिट्टी चूमने लगी है। आसमान बादलों को मुहब्बत का पैगाम लेकर धरती के पास भेजने लगा है। ऐसा ही परसों हुआ था जब दिल्ली से उड़ा विमान जबलपुर एयरपोर्ट पर उतरने से घबराता रहा कि वहाँ तो धरती से मिलने बादल नीचे उतर आये हैं।
गरीबी सचमुच अभिशाप है
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
"डाक्टर साहब मेरा बेटा ठीक होगा कि नहीं, सच-सच बताइए।"
प्रतिष्ठा पर चोट पहुँचाने से सत्य को जानना जरूरी
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
अगर मैंने ये कहानी अपने कानों से नहीं सुनी होती तो मुझे कभी अपने पत्रकार होने की शर्मिंदगी के उस अहसास से नहीं गुजरना पड़ता, जिससे मैं दो दिन पहले गुजरा हूँ। कहानी मुझे एक डॉक्टर ने सुनाई और पहली बार मुझे इस कहानी को सुनते हुए आत्मग्लानि सी हो रही थी। मुझे लग रहा था कि कहीं चुल्लू भर पानी मिल जाए तो फिर कभी किसी को अपना मुँह भी न दिखाऊँ।
स्पष्ट खुलासा
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मैं चाहूँ तो फोन करके भी जबलपुर के Rajeev Chaturvedi को धन्यवाद कह सकता हूँ। लेकिन मैं पोस्ट के जरिए धन्यवाद कहने जा रहा हूँ, क्योंकि उन्होंने इस बार मुझे एक ऐसी किताब भेंट की जिसने मेरी समझ के आकार को बदल दिया है। मैंने उनसे कई बार इस बात की चर्चा की थी कि अपने छोटे भाई के निधन से मैं बहुत व्यथित हूँ, और भीतर ही भीतर बहुत अवसाद से गुजरता हूँ।
आज के तुलसी
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
“राम जी अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र थे। बहुत बहादुर थे। सभी लोग उन्हें बहुत प्यार करते थे।”
मन की कमजोरी
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
हाथी वाली कहानी आप सबने बचपन में ही सुन ली होगी।
मैं जानता हूँ कि पहली पंक्ति पढ़ कर एक क्षण में आपके जेहन में न जाने हाथियों की कितनी कहानियाँ कौंध पड़ी होंगी।
जहाँ आकर मौत भी मुस्काराती है
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज मैं आपको जबलपुर में बैठ कर अनिता की कहानी सुनाऊँगा। फिर सुनाऊँगा फेसबुक पर किसी की भेजी वो कहानी जिसका रिश्ता सीधे-सीधे अनिता की कहानी से जुड़ा है।
जिन्दगी की उम्मीद
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज मुझे मिलना है जबलपुर के विराट हॉस्पिस में कैंसर के उन मरीजों से जिन्हें डॉक्टरों ने कह दिया है कि अब दवा नहीं सिर्फ दुआ का आसरा है।
जीने का संकल्प
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
“जब विकल्प की सीमाएँ समाप्त हो जाती हैं, तब मानव संकल्प का उदय होता है।”