Tag: जमींदार
दूध का दाम
प्रेमचंद :
अब बड़े-बड़े शहरों में दाइयाँ, नर्सें और लेडी डाक्टर, सभी पैदा हो गयी हैं; लेकिन देहातों में जच्चेखानों पर अभी तक भंगिनों का ही प्रभुत्व है और निकट भविष्य में इसमें कोई तब्दीली होने की आशा नहीं। बाबू महेशनाथ अपने गाँव के जमींदार थे, शिक्षित थे और जच्चेखानों में सुधार की आवश्यकता को मानते थे, लेकिन इसमें जो बाधाएँ थीं, उन पर कैसे विजय पाते ? कोई नर्स देहात में जाने पर राजी न हुई और बहुत कहने-सुनने से राजी भी हुई, तो इतनी लम्बी-चौड़ी फीस माँगी कि बाबू साहब को सिर झुकाकर चले आने के सिवा और कुछ न सूझा।
जीओ और जीने दो
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरे मन में हमेशा से था कि अगर मैं कभी इटली आया तो कोलेजियम जरूर जाऊँगा, जहाँ ईसा पूर्व कई सौ वर्ष पहले बने उस स्टेडियम में जरूर जाऊँगा, जहाँ ग्लैडिएटर्स कहे जाने वाले योद्धा जमींदारों की मौज के लिए मरने को लड़ते थे। मैं इटली के रोम आया तो शहर के बीच मौजूद पवित्र देश वैटिकन की यात्रा पर सबसे पहले पहुँचा, फिर मैं उस कब्रगाह में भी गया, जहाँ पहली और दूसरी सदी में मसीहियों के शवों को दफनाया जाता था। जमीन से कई मंजिल नीचे बने इस कब्रगाह की कहानी बेहद दिलचस्प है, लेकिन अभी मैं आपको अपने साथ लिए चलता हूँ उस स्टेडियम में, जिसमें दरअसल रोम शहर का रोम-रोम बसा है।
नशा
प्रेमचंद :
ईश्वरी एक बड़े जमींदार का लड़का था और मैं एक गरीब क्लर्क का, जिसके पास मेहनत-मजूरी के सिवा और कोई जायदाद न थी। हम दोनों में परस्पर बहसें होती रहती थीं। मैं जमींदारी की बुराई करता, उन्हें हिंसक पशु और खून चूसने वाली जोंक और वृक्षों की चोटी पर फूलने वाला बंझा कहता। वह जमींदारों का पक्ष लेता, पर स्वभावत: उसका पहलू कुछ कमजोर होता था, क्योंकि उसके पास जमींदारों के अनुकूल कोई दलील न थी।