Tag: जिंदगी
अगर…
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरी कहानियाँ आप अपने बच्चों को भी सुनाते हैं न?
लैला
प्रेमचंद :
यह कोई न जानता था कि लैला कौन है, कहाँ से आयी है और क्या करती है। एक दिन लोगों ने एक अनुपम सुंदरी को तेहरान के चौक में अपने डफ पर हाफ़िज की यह ग़जल झूम-झूम कर गाते सुना-
रसीद मुज़रा कि ऐयामे ग़म न ख्वाहद माँद,
चुनाँ न माँद, चुनीं नीज़ हम न ख्वाहद माँद।
जिंदगी सुन जरा मेरा इरादा क्या है
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
संजय से उसकी क्लास टीचर ने पूछा, "संजू अगर मैं तुम्हें दो रुपये दूँ, और फिर दो रुपये दूँ तो तुम्हारी जेब में कितने रुपये होंगे?"
संजू ने कहा कि मैडम जी, पाँच रुपये।
हमारी-आपकी ज़िंदगी का आखिर मकसद क्या है?
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
एक अनपढ़ आदमी के नाम कहीं से एक चिट्ठी आयी। अनपढ़ आदमी अकेला था। न आगे नाथ न पीछे पगहा। ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी ने उस अनपढ़ आदमी के नाम घर पर चिट्ठी भेजी हो। उस आदमी ने उलट-पलट कर उस लिफाफे को देखा। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर इसमें लिखा क्या है। किसी ने उसे चिट्ठी लिखी ही क्यों?