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जिनके पास भावनाएँ हैं, वही जिन्दगी के मर्म को समझता हैं
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरा एक दोस्त बहुत व्यस्त रहता है। सारा दिन काम में डूबा रहता है। उसके फोन की घंटियाँ थमने का नाम नहीं लेतीं। सारा दिन फोन कान पर ऐसे चिपका रहता है मानो फोन का अविष्कार नहीं हुआ होता तो वो जिन्दगी में कुछ कर ही नहीं पाता।
चंद्रवती
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरी पत्नी की छोटी बहन का नाम है आभा। ईश्वर की ओर से मुझे बतौर साली वो मिली है। है तो पूरी अंग्रेजी वाली और मुझे नहीं लगता कि उसने अपनी जिन्दगी में हिंदी की कोई किताब पूरी पढ़ी होगी। प्रेमचंद का नाम सुना है, पर मेरा दावा है कि उनकी एक भी कहानी उसने किताब में आँखें गड़ा कर नहीं पढ़ी होगी। दो चार कहानियाँ मेरे मुँह से सुन कर ही हिंदी साहित्य का उसका भरा-पूरा ज्ञान हम सबके सामने है।
मौन की महिमा
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
चंद्रवती हमारी जिन्दगी में जब आयी थी तब उसकी उम्र चालीस साल रही होगी। वो पिछले 25 वर्षों से हमारे साथ है।
गलती को पुचकार कर सुधारें
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कल रात सोते हुए मैं फूला नहीं समा रहा था कि मैंने कड़वी चाय को दुरुस्त करने की कला के साथ-साथ रिश्तों में प्यार के फूल खिलाने की विद्या भी आपको सिखलायी। मैंने कल जो पोस्ट लिखी थी, उसमें जिन्दगी का निचोड़ डाल दिया था।
चाहत में शिद्दत हो सब मिलेगा
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
संजय जी, मेरी जिन्दगी में प्रेम नहीं है।”
कल मेरा इनबॉक्स इस एक वाक्य से भर गया। कुछ लोगों ने तो सीधे-सीधे मेरी वाल पर ही अपनी कहानी लिख दी, कुछ लोगों ने अपने दोस्तों की कहानी लिखी कि उसके दोस्त को फलाँ से प्यार है, पर उसकी शादी हो चुकी है, उसके बच्चे हैं, अब वो क्या करे?
जिन्दगी जीने के 10 नुस्खे
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
बचपन में जब मैं प्रेमचंद के किसी उपन्यास को पढ़ता तो मेरे मन में यही ख्याल दौड़ता कि मैं बीए तक पढ़ाई करूंगा।
उनकी किताबों में लिखा रहता था - प्रेमचंद, बीए।
प्यार के बीज
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरी तीन नानियाँ थीं। तीन नहीं, चार।
चार में से एक नानी मेरी माँ की माँ थी और बाकी तीन मेरी माँ की चाचियाँ थीं। माँ तीनों चाचियों को बड़की अम्मा, मंझली अम्मा और छोटकी अम्मा बुलाती थी, इसलिए माँ की तीनों अम्माएँ मेरी बड़की नानी, मंझली नानी और छोटकी नानी हुईं। बचपन में मुझे ऐसा लगता था कि चारों मेरी माँ की माँएं हैं और इस तरह मेरी चार नानियाँ हैं। पर मैंने पहली लाइन में ऐसा इसलिए लिखा है कि मेरी तीन नानियाँ थीं, क्योंकि मेरी माँ की माँ के इस दुनिया से चले जाने के बाद मुझे अपनी उन तीन नानियों के साथ रहने का ज्यादा मौका मिला, जो माँ की चाचियाँ थीं।
गाली लंगड़ी होती
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
कायदे से ये कहानी मुझे कल ही लिखनी चाहिए थी। घटना कल की ही है।
रिश्तों का पाठ
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरी माँ की तबियत जब बहुत खराब हो गयी थी तब पिताजी ने मुझे पास बिठा कर बता दिया था कि तुम्हारी माँ बीमार है, बहुत बीमार। मैं आठ-दस साल का था। जितना समझ सकता था, मैंने समझ लिया था। पिताजी मुझे अपने साथ अस्पताल भी ले जाते थे। उन्होंने बीमारी के दौरान मेरी माँ की बहुत सेवा की, पर उन्होंने मुझे भी बहुत उकसाया कि मैं भी माँ की सेवा करूं।
यादों की लहरें
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मुझे बचपन में तैरना नहीं आता था, लेकिन अमेरिका में जब मैं अपने बेटे को स्वीमिंग क्लास के लिए ले जाने लगा, तो मैंने उसके कोच की बातें सुन कर तैरने की कोशिश की और यकीन मानिए, पहले दिन ही मैं स्वीमिंग पूल में तैरने लगा।