Friday, November 22, 2024
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ज्ञान कभी व्यर्थ नहीं जाता

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

आज एक सुनी सुनाई कहानी सुनाता हूँ। 

वैसे भी कई लोगों ने मुझे फेसबुक वाला बाबा बुलाना शुरू कर दिया है। बाबा क्यों, ये मुझे नहीं पता। मेरे तो बाल भी अभी सफेद नहीं हुए पर कुछ लोगों को लगता है कि ज्ञान देने वाला बाबा ही होता है। मुमकिन है टीवी पर तमाम बाबाओं को ऐसी बातें करते देख उनके मन में ये भाव आया हो कि ज्ञान तो बाबा ही देते हैं।

जन्नत की हूरों के बारे में जाकिर नाइक को खुला पत्र

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :

परम आदरणीय जनाब-ए-आला स्कॉलर श्री ज़ाकिर नाइक साहब, 

इस्लाम और दुनिया के तमाम धर्मों के बारे में आपके ज्ञान को देखकर चकित हूं। लेकिन एक हज़ार मुद्दों पर जानकारी लेने में मेरी दिलचस्पी कम है। मैं तो बस जन्नत की हूरों के बारे में अधिक से अधिक जानना चाहता हूं। आशा है, जैसे आप भारत से भाग गए हैं, वैसे मेरे इन पैंतीस सवालों से नही भागेंगे।

इज्जत दो, इज्जत बढ़ेगी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

ड्राइवर गाड़ी चला रहा था, मैं अपनी पत्नी के साथ पीछे बैठा था। 

कल बहुत दिनों के बाद पत्नी के बार-बार कहने पर मैं नया मकान देखने जा रहा था। मैंने पहले भी आपको बताया है कि पत्नी का कहना है कि मुझे बड़े घर में शिफ्ट होना चाहिए। एक ऐसे घर में जहाँ मेरे सोने के लिए अलग कमरा हो, पढ़ने के लिए अलग। जहाँ चार मेहमान अगर आ जाएँ, तो हम ठीक से उनकी मेहमानवाजी कर पाएँ। 

प्यार से बढ़ कर संसार में कोई संपति नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

कभी-कभी मैं स्कूल से घर आता और खाना नहीं खाता था। माँ मुझसे कहती रहती कि हाथ धोकर खाना खाने बैठ जाओ बेटा, पर मैं माँ की बात अनसुनी कर देता। माँ आती, मुझे दुलार करती और कहती कि मेरे राजा बेटा को क्या हो गया है, क्यों चुप है। माँ और पुचकारती। फिर मैं खुश होकर खाना खाने बैठ जाता, माँ मुझे तोता-मैना कह कर खिलाने बैठ जाती।

सारनाथ – आइए यहाँ इतिहास से संवाद करें

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार : 

वाराणसी घूमने गये हों तो सारनाथ न जाएँ ये कैसे हो सकता है। सारनाथ भारत के ऐतिहासिक विरासत का जीता जागता उदाहरण है। भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के पश्चात अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था। बौद्ध धर्म के इतिहास में इस घटना को धर्म चक्र प्रवर्तन ( Turning of the Wheel) का नाम दिया जाता है।

पोर्न साइट्स का ज्ञान

विकास मिश्रा, आजतक  : 

तब मेरी उम्र करीब 9-10 साल रही होगी। घर में बड़े भइया की पहली संतान का जन्म हुआ था। बेटा हुआ था और ये खबर मुझे स्कूल में मिली थी। उससे पहले हमें पता तक नहीं था कि भाभी संतान को जन्म देने वाली हैं। घर पहुँचे तो खुशियाँ अपरम्पार।

बड़े भाई साहब

प्रेमचंद :   

मेरे भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े थे, लेकिन केवल तीन दरजे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढ़ना शुरू किया था जब मैंने शुरू किया था; लेकिन तालीम जैसे महत्व के मामले में वह जल्दबाजी से काम लेना पसंद न करते थे।

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