Tag: दिल्ली सरकार
प्रदूषण नहीं, अपनी जवाबदेही से बचने का शोशा
संदीप त्रिपाठी :
देश की राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण रोकने के लिए तारीख के हिसाब से वाहन चलाने का नियम बनाये जाने से कई सवाल खड़े होते हैं। क्या वाकई दिल्ली सरकार वायु प्रदूषण रोकने के प्रति गंभीर है? क्या दिल्ली सरकार ने यह फैसला पूरी ईमानदारी से सभी संभावित विकल्पों पर भली-भांति विचार करने के बाद लिया है? या क्या केवल अदालत को दिखाने के लिए एक ऊटपटांग फैसला दिल्ली की जनता पर थोप दिया गया है?
सौ दिन, एक साल, दो सरकारें!
कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार
दिल्ली दिलचस्प संयोग देख रही है। एक सरकार के सौ दिन, दूसरी के एक साल! दिलचस्प यह कि दोनों ही सरकारें अलग-अलग राजनीतिक सुनामियाँ लेकर आयीं। बदलाव की सुनामी! जनता ने दो बिलकुल अनोखे प्रयोग किये, दो बिलकुल अलग-अलग दाँव खेले।
केजरीवाल अगर ऐसे सरकार चलायें, तो….?
क़मर वहीद नक़वी :
आम आदमी गजब चीज है! किसी को भनक तक नहीं लगने देता कि वह क्या करने जा रहा है। वरना किसे अंदाज था कि सिर्फ नौ महीनों में ही दिल्ली घर घर मोदी से घर घर मफलर में बदल जायेगी!
केजरीवाल (Kejriwal) ने क्यों किया सरकार का बलिदान
राजीव रंजन झा (Rajeev Ranjan Jha)
हाँ, मुझे यकीन नहीं था कि दिल्ली की जनता अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को झोली भर कर इतनी सीटें दे देगी। लेकिन मैंने यह भी नहीं सोचा था कि केजरीवाल बिल्ली के भाग से छींका टूटे वाली शैली में अपनी झोली में आ गिरे इस अवसर को यूँ गँवा देंगे।