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दिल्ली से लैंसडाउन – एक शांत हिल स्टेशन
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
दिल्ली से 300 किलोमीटर से कम दूरी पर किसी हिल स्टेशन पर जाना चाह रहे हों तो उसमें लैंसडाउन विकल्प हो सकता है। हालाँकि लैंसडाउन शिमला या मसूरी की तरह रौनक वाली जगह तो नहीं है पर यह एक शांत हिल स्टेशन है काफी कुछ डलहौजी की तरह। साम्यता यह है कि यहाँ भी कैंटोनमेट बोर्ड है।
इंडिया गेट- अमर जवानों की याद
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
दिल्ली का इंडिया गेट। इसे दिल्ली का दिल कहा जाए तो गलत नहीं होगा। पूरी दिल्ली के मानचित्र में दिल्ली के बीचों बीच स्थित है। न सिर्फ बाहर से आने वाले लोगों के बीच बल्कि दिल्ली के स्थानीय लोगों के भी घूमने की सबसे प्रिय जगह है। हालाँकि इंडिया गेट नाम के मुताबिक यह कोई भारत का प्रवेश द्वार नहीं है। बल्कि यह अमर जवानों की यादगारी है। यह 43 मीटर ऊंचा विशाल दरवाजा है। आजादी से पहले इसे किंग्सवे कहा जाता था। दिल्ली के वास्तुकार सर एडवर्ड लुटियन ने ही इसका भी डिजाइन तैयार किया था।
पुराना किला – कई अफसाने हैं दफन
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
दिल्ली को जानना है तो पुराना किला गये बिना बात अधूरी रह जानी है। पुराना किला के साथ कई पुरानी यादें जुड़ी हैं। लोग तो कहते हैं कि यह पांडव कालीन है। पर किले के साथ मुगलकाल की कई स्मृतियां जुड़ी हैं।
दूसरे करें तो रासलीला, ‘आप’ करे तो कैरेक्टर ढीला
संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :
दिल्ली में आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों को संसदीय सचिव बना कर उनके लाभ की कथित व्यवस्था करने के आरोपी अरविन्द केजरीवाल से उम्मीद की जा रही है कि वे अपने विधायकों का इस्तीफा करवा दें और चुनाव हो जाने दें।
नंदूजी का मूंगदाल का गोलगप्पा
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
गोलगप्पा, पानी पुरी, फोकचा, घुपचुप। अगल-अलग देश के हिस्सों में अलग नाम से जाना जाता है। वैसे तो गोलगप्पा बचपन से ही आप फुटपाथ पर गोलगप्पे वाले स्टाल पर खाते आये होंगे।
चेत जाइये नहीं तो कुछ भी नहीं होगा
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज चौथा दिन है जब बुखार ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा है। बुखार क्यों हुआ, नहीं पता। मैंने खाने-पीने में ऐसी कोई बदपरहेजी नहीं की। पर बुखार हो गया। एक दिन का बुखार होता है तो पत्नी की सेवा से ठीक हो जाता हूँ। दो दिन का बुखार होता है तो बिस्तर पर लेटे-लेटे ऊटपटांग सपने देखने लगता हूँ। तीसरे दिन तो डॉक्टर को दिखला ही लेना चाहिए। क्रोसिन और कालपोल से तीसरे दिन काम नहीं चलाना चाहिए। तो कल मैं डॉक्टर को दिखला आया।
एक गमछात्मक पोस्ट
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
Anil Upadhyay जी के सौजन्य से बरसों बाद अपन गमछित हुए।
गर्मियों में गमछा बहुतै काम आता है। मेरे कई शौकों में से एक शौक यह है कि दिल्ली में मुँह उठा कर किसी भी दिशा में निकल जाना, इंडिया गेट से लेकर रोहिणी से लेकर द्वारिका तक के किसी पब्लिक पार्क में सोते हुए, आधे जागते हुए जमाने के हाल पर गौर फरमाना।
मिशन यूपी 2017 : भाजपा के लिए खुद में झांकने का समय
पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
यह कहने में शायद ही किसी को हिचक होगी कि एक हजार साल बाद देश में वह राज आया है, जहाँ सत्ता का शिखर पुरुष छद्म धर्मनिरपेक्षता का स्वांग नहीं करता और ' सबका साथ सबका विकास' के मंत्र का जाप करने के बावजूद भारतीय संस्कृति को बेखौफ ओढ़ता है। देश की विरासत और धरोहरों को सर-आँखों पर रखते हुए अनथक देश की दशा और दिशा बदलने में सतत प्रयत्नशील है। जिस सिस्टम को 15 अगस्त 1947 में बदल जाना चाहिए था, उसको जिन लोगों ने अपने फायदे के लिए बरकरार रखा और लालची मीडिया को अपने पाले में रखते हुए जिन्होंने भ्रष्टाचार को लूटपाट में बदल दिया। उस विकृत हो चुकी व्यवस्था को बदलने की प्रक्रिया की भी देश ने विगत दो वर्षों के दौरान शुरुआत होते देखा।
कविगुरु एक्सप्रेस से महामना एक्सप्रेस तक
विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के नाम पर 22 जनवरी 2016 से वाराणसी और दिल्ली के बीच नई ट्रेन महामना एक्सप्रेस चलायी गयी है। संयोग है कि इस ट्रेन का संचालन काशी हिंदू विश्वविद्यालय के 100 साल पूरे होने के मौके पर किया जा रहा है। विश्वविद्यालय की स्थापना 4 फरवरी 1916 को हुई थी।
इतने गुस्से में क्यों हैं लोग?
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
यह कितना निर्मम समय है कि लोग इतने गुस्से से भरे हुए हैं। दिल्ली में डॉ. पंकज नारंग की जिस तरह पीट-पीट कर हत्या कर दी गयी, वह बात बताती है कि हम कैसा समाज बना रहे हैं। साधारण से वाद-विवाद का ऐसा रूप धारण कर लेना चिंता में डालता है।