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एडवेंचर टूरिज्म के पैकेज

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
सिकंदर जब भारत फतह के लिए आया था, तो दिल्ली से वापस हो लिया था, पता है क्यों, दिल्ली में नदी और नाली का फर्क बाऱिश में खत्म हो जाता है। सिकंदर ने अपने सेनापति से कहा-झेलम, चिनाब जैसी नदियाँ जब हम पार करते हैं, तो हमें यह पता होता है कि ये नदियाँ हैं। दिल्ली में जिसे सड़क समझो, वह नाला निकलता है, जिसे नाला समझो, वह नदी निकलती है। जिसे नदी समझो वह कूड़े का ढेर निकलता है। दिल्ली बहुतै कनफ्यूजिंग है भाई।
यादों में रचा बसा सोनपुर मेला

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
जब भी नवंबर महीना आता है देश के किसी भी कोने में रहूँ, सोनपुर मेला जरूर याद आता है। कार्तिक गंगा स्नान के साथ ही सोनपुर मेले के तंबू गड़ जाते हैं। गंगा स्नान के लिए नारायणी (गंडक) और गंगा के संगम पर लाखों लोगों की भीड़ उमड़ती है। पश्चिम की तरफ सोनपुर और पूरब की तरफ हाजीपुर में नदी तट पर कई किलोमीटर तक श्रद्धालुओं की स्नान का पुण्यलाभ पाने के लिए भीड़ उमड़ती है।
चाहत में शिद्दत हो, तो कुछ भी मिलेगा

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरी मुलाकात बहुत से ऐसे लोगों से होती है, जिन्होंने जो चाहा पाया। बहुत से ऐसे लोगों से भी होती है, जो कुछ पाना चाहते तो थे, लेकिन नहीं पा सके।