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पलायन सिर्फ कैराना में?
निभा सिन्हा :
हमारे गाँव-शहरों में भी तो पलायन हुआ, और होता रहा है और अब भी हो रहा है। गाँव के गाँव खाली हो गये, पूरा शहर वीरान हो गया, लोग उसके बारे में कभी बात नहीं करते। क्योंकि ये गाँव-शहर उजड़े अच्छे स्कूल-कॉलेज नहीं होने के कारण, नाम के स्कूलों और कॉलेज में अच्छे शिक्षक न होने के कारण और कुछ शिक्षक थे भी अच्छे तो बच्चों के भविष्य के बारे में कभी नहीं सोचे, उसके कारण।
मीडिया की संलिप्तता से झुक गया सिर
पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
अगस्ता वेस्टलैंड घूस कांड में नेता, नौकरशाह और सैन्य अधिकारियों के साथ मीडिया की भी संलिप्तता ने पत्रकार बिरादरी का सिर शर्म से झुका दिया। पेड न्यूज का घिनौना चेहरा खुल कर सामने आया।
गर्मी में उधारी
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
यह निबंध कक्षा आठ के उस बच्चे की कापी से लिया गया है, जिसने ग्रीष्मकालीन क्रियेटिव राइटिंग कंपटीशन में टाप किया है-
काम के प्रति लगाव रखें
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
एक भावी नेता ने मुझसे संपर्क किया और कहा कि फलाँ पार्टी के अध्यक्ष से तो आपके अच्छे संबंध हैं, आप उनसे मेरी सिफारिश कीजिए। उनसे कहिए कि अगर उन्हें टिकट मिला तो वो हर हाल में चुनाव जीत जाएँगे।
उफ्फ टोपी, हाय टोपी
पुराणिक, व्यंग्यकार :
अभी कांग्रेस का स्थापना दिवस मनाया गया, कई नेता गाँधी टोपी में थे, बहुत अश्लील लग रहे थे। पर उनसे ज्यादा वह टोपी अश्लील लग रही थी।
ध्रुवीकरण करने वाले नेताओं और एजेंट बुद्धिजीवियों से सावधान!
अभिरंजन कुमार :
मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि इस देश के आम, गरीब, अनपढ़, कम पढ़े-लिखे, ग्रामीण लोग धर्मनिरपेक्ष हैं, लेकिन प्रायः सभी राजनीतिक दल, नेता, बुद्धिजीवी, पढ़े-लिखे और शहरी लोग सांप्रदायिक हैं।
मन भरा तो मोक्ष मिला
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
पत्रकारिता में होने का कोई फायदा हो न हो, लेकिन एक फायदा जरूर है कि ऐसे कई लोगों से मिलने का मौका मिल जाता है, जिनसे आम तौर पर मुलाकात संभव नहीं।
सत्संग के दुष्परिणाम
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
सु-कंपनी नामक सज्जन ने गुरु-घंटाल अकादमी की मासिक समस्या-सुलझाओ गोष्ठी में अपनी समस्या यूँ रखी-मेरा नाम सु-कंपनी है, मैंने हमेशा सज्जनता आचरण किया है। शास्त्रोक्त सूत्रों के मुताबिक मैंने हमेशा उन्हे ही मित्र बनाया, जिनकी सज्जनता को लेकर मुझे कभी कोई शक ना रहा।