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जहाँ उम्मीद, वहीं जिन्दगी, जहाँ प्यार, वहीं संसार
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
आपने ये पढ़ा होगा कि ‘जहाँ उम्मीद है, वहीं जिन्दगी है’। आपने सुना होगा कि ‘जहाँ प्यार होता है, वहीं संसार होता है’।
बुनियादी विश्वास
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
माँ की सुनायी कहानियों में सिंहासन बत्तीसी की पुतलियों की कहानियों की मेरे मन पर अमिट छाप है।
रिश्तों की पूंजी
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
आज मैं जो सुनाने जा रहा हूँ, वो कहानी नहीं। हकीकत है। हमारा और आपका भविष्य है, अगर हम समय रहते नहीं चेते तो।
प्यार, परवाह और भरोसा
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
पिछले हफ्ते हम अपनी बहन के ससुर के श्राद्ध में शामिल होने के लिए पटना गये थे। हम यानी मैं और मेरी पत्नी।
बेटा, जी लो जिन्दगी
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
यह कहानी किसी की आप बीती हो सकती है।
बेटी ‘उजाला’ और बहू ‘बेरहम’
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
माँ ने बताया था कि जिस दिन मेरा जन्म हुआ था, उस दिन खूब बारिश हो रही थी। सुबह के पांच बजे घर में थाली पर हँसुए की झंकार गूंजी थी। मैं याद करने पर आऊँ तो सब कुछ याद आ सकता है। लेकिन मैं आज अपने जन्मदिन को याद नहीं करना चाहता।
आखिरी हीला
प्रेमचंद :
यद्यपि मेरी स्मरण-शक्ति पृथ्वी के इतिहास की सारी स्मरणीय तारीखें भूल गयीं, वह तारीखें जिन्हें रातों को जागकर और मस्तिष्क को खपाकर याद किया था; मगर विवाह की तिथि समतल भूमि में एक स्तंभ की भाँति अटल है। न भूलता हूँ, न भूल सकता हूँ।
अकेलापन है सजा
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
हमारे दफ्तर के एक साथी की पत्नी अपने दोनों बच्चों समेत पिछले हफ्ते भर से मायके गयी हैं।
जिस दिन मेरे साथी की पत्नी मायके जा रही थीं, वो बहुत खुश थे। उन्होंने दफ्तर में बाकायदा एनाउन्स किया कि अब वो दो हफ्ते छड़ा रहेंगे।
जीओ और जीने दो
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मुझे तो सुबह उठ कर अपनी पत्नी को धन्यवाद कहना ही चाहिए।
उसने मुझे कभी देर रात हाथ में कम्प्यूटर की स्क्रीन में झाँकने से नहीं रोका।
सही नीयत और संपूर्ण भरोसे से होता है काम सफल
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
दो दिन बाद मेरी शादी होनी थी।
मैंने किसी से पूछा नहीं था, खुद ही तय कर लिया था कि शादी 20 अप्रैल को होगी। कैसे होगी, कौन कराएगा, होगी कि नहीं होगी, ये मेरे सोचने की ही बात थी, लेकिन मैं सोच नहीं रहा था।