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जो हुआ अच्छा हुआ, जो होगा अच्छा होगा
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
सच में मेरा मन बदल गया आज पोस्ट लिखते-लिखते। मैंने सोचा था कि आज इंग्लैंड की सिमरन की कहानी आपको सुनाऊंगा। सुबह नींद खुलते ही मेरे मन में कहानी का ताना-बाना बुन जाता है। मैंने बहुत बार कोशिश की है कि कभी एक रात पहले ही लिख कर सो जाऊं, ताकि सुबह मुझे जल्दी न जगना पड़े, लेकिन मेरे चाहने से ऐसा नहीं होता। मेरी उंगलियाँ रुक जाती हैं, कहानी आगे बढ़ती ही नहीं।
जन्नत की हूरों के बारे में जाकिर नाइक को खुला पत्र
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
परम आदरणीय जनाब-ए-आला स्कॉलर श्री ज़ाकिर नाइक साहब,
इस्लाम और दुनिया के तमाम धर्मों के बारे में आपके ज्ञान को देखकर चकित हूं। लेकिन एक हज़ार मुद्दों पर जानकारी लेने में मेरी दिलचस्पी कम है। मैं तो बस जन्नत की हूरों के बारे में अधिक से अधिक जानना चाहता हूं। आशा है, जैसे आप भारत से भाग गए हैं, वैसे मेरे इन पैंतीस सवालों से नही भागेंगे।
आखिरी हीला
प्रेमचंद :
यद्यपि मेरी स्मरण-शक्ति पृथ्वी के इतिहास की सारी स्मरणीय तारीखें भूल गयीं, वह तारीखें जिन्हें रातों को जागकर और मस्तिष्क को खपाकर याद किया था; मगर विवाह की तिथि समतल भूमि में एक स्तंभ की भाँति अटल है। न भूलता हूँ, न भूल सकता हूँ।