Saturday, August 9, 2025
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प्रतिष्ठा पर चोट पहुँचाने से सत्य को जानना जरूरी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

अगर मैंने ये कहानी अपने कानों से नहीं सुनी होती तो मुझे कभी अपने पत्रकार होने की शर्मिंदगी के उस अहसास से नहीं गुजरना पड़ता, जिससे मैं दो दिन पहले गुजरा हूँ। कहानी मुझे एक डॉक्टर ने सुनाई और पहली बार मुझे इस कहानी को सुनते हुए आत्मग्लानि सी हो रही थी। मुझे लग रहा था कि कहीं चुल्लू भर पानी मिल जाए तो फिर कभी किसी को अपना मुँह भी न दिखाऊँ। 

ये जंगलराज नहीं है, ये पॉवर सेंटर का ‘बिखराव’ है

सुशांत झा, पत्रकार :

नीतीश कुमार की कानून-व्यवस्था को लेकर प्रतिबद्धता पर व्यक्तिगत रूप से मुझे कोई संदेह नहीं है। उन्होंने पिछले एक दशक में बिहार को ठीक-ठाक पटरी पर लाया है। लेकिन सीवान के पत्रकार की हत्या पर मेरी कुछ अलग राय है।

अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक : 

मेरे जैसे पत्रकार नहीं होने चाहिए। ऐसे पत्रकार बेकार होते हैं, जो मालदा की घटना पर, सियाचीन के जाबांजों की मौत पर, सुलग रहे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय पर अपनी कलम नहीं भांजते। ऐसे पत्रकारों पर लानत है। संजय सिन्हा से कई लोगों ने गुहार लगायी है कि आप कुछ ऐसा क्यों नहीं लिखते, जिससे आपकी देशभक्ति जाहिर हो।

चोर मचाये शोर

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक : 

विजय और रवि दोनों सगे भाई थे। एक दिन विजय और रवि के पिताजी घर छोड़ कर कहीं चले गये। वो मजदूरों के नेता थे। इस तरह अचानक उनके घर छोड़ कर चले जाने से नाराज कुछ लोगों ने विजय को पकड़ कर उसकी कलाई पर लिख दिया, "मेरा बाप चोर है।" विजय का बाप चोर नहीं था। लेकिन बड़ा होकर विजय चोर बन गया और रवि पुलिस अफसर।

बहन के साथ बिना इजाजत सेल्फी लेने वाले को आप सपोर्ट करेंगे?

अभिरंजन कुमार :

डीएम चंद्रकला ने क्या गलत कहा?

सचमुच इस देश के बुद्धि-विवेक को लकवा मार गया है। अगर हमारे काबिल दोस्त और पत्रकार भूपेंद्र चौबे सन्नी लियोनी से कुछ असहज करने वाले सवाल पूछ दें, तो हम उन्हें महिला की गरिमा के बारे में ज्ञान देने लगते हैं, लेकिन एक 18 साल का लड़का, जिसे नए कानूनों के मुताबिक, महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामले में किसी उम्रदराज जितनी ही सजा दी जा सकती है, अगर एक महिला डीएम के साथ बिना उनकी इजाजत सेल्फी बनाने लगे, उनके रोकने पर भी न रुके, फोटो डिलीट करने के लिए कहने पर भी डिलीट न करे और हीरोगीरी दिखाये, तो हम महिलाओं की गरिमा भूल कर उसके समर्थन में उतर आते हैं।

काम के प्रति लगाव रखें

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक : 

एक भावी नेता ने मुझसे संपर्क किया और कहा कि फलाँ पार्टी के अध्यक्ष से तो आपके अच्छे संबंध हैं, आप उनसे मेरी सिफारिश कीजिए। उनसे कहिए कि अगर उन्हें टिकट मिला तो वो हर हाल में चुनाव जीत जाएँगे।

अपेक्षित बनाम उपेक्षित

सुशांत झा, पत्रकार : 

आधे से ज्यादा पत्रकारों और करीब 80% पब्लिक को पूछा जाए कि अपेक्षित और उपेक्षित में क्या फर्क है तो दाँत निपोड़ देंगे, लेकिन लालू के कुमार ने कह दिया तो मजे ले रहे हैं। 

हिन्दी में नौकरी की संभावना कहाँ है

संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन:   

हिन्दी में नौकरी की संभावनाएँ लगातार कम हुई हैं। हो रही हैं। एक समय था जब हिन्दी टाइपराइटर पर कोई ऐसा-वैसा बैठ भी नहीं सकता था। टाइपिंग से अनजान व्यक्ति शायद एक शब्द भी टाइप नहीं कर पाता। अगर हिन्दी में काम करना है, कुछ भी, कितना भी तो हिन्दी टाइपिस्ट के बिना काम नहीं हो सकता था। इसलिए ज्यादातर दफ्तरों में बिना काम के भी टाइपिस्ट होते थे या वहाँ काम ही ना हो तो अलग बात है।

मीडिया में नही है नियमित और सुकून की नौकरी

संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :

मीडिया में ऐसा नहीं है कि अगर आपने एक स्तरीय मीडिया संस्थान में नौकरी शुरू की, अच्छा काम करते हैं, योग्य हैं तो उसी में रहेंगे, समय के साथ आपको तरक्की मिलती रहेगी और आप संतुष्ट या असंतुष्ट रहकर भी उसी में नौकरी करते हुए रिटायर हो जाएँ। अमूमन ऐसा देखने मे नहीं आता है – कुछेक अपवाद जरूर होंगे।

सीबीआई की पहली चुनौती है अक्षय का मामला

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार:

पत्रकार अक्षय सिंह की मौत कैसे हुई? क्या वह व्यापम घोटाले के किसी नये सच तक पहुँचने के करीब थे? क्या नम्रता दामोर की संदिग्ध मौत की पड़ताल करते-करते अक्षय इस घोटाले के किसी और सिरे तक पहुँचने वाले थे?

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