Tag: पुण्य प्रसून बाजपेयी
आजादी के बाद मुसलमानों की अग्नि-परीक्षा !
पुण्य प्रसून बाजपेयी, कार्यकारी संपादक, आजतक :
1952 में मौलाना अब्दुल कलाम आजाद को जब नेहरु ने रामपुर से चुनाव लड़ने को कहा तो अब्दुल कलाम ने नेहरु से यही सवाल किया था कि उन्हें मुस्लिम बहुल रामपुर से चुनाव नहीं लड़ना चाहिये।
मोदी का मिशन बनाम संघ का टारगेट
पुण्य प्रसून बाजपेयी, कार्यकारी संपादक, आजतक :
मोदी को पीएम की कुर्सी चाहे 272 में मिलती हो लेकिन संघ का टारगेट 395 सीटों का है। संघ के इस टारगेट का ही असर है कि अगले एक महीने में मोदी के पांव जमीन पर तभी पडेंगे, जब उन्हें रैली को संबोधित करना होगा।
सर्किट हाऊस के कमरा नं 1 ए से 7 रेसकोर्स की दौड़ तक
पुण्य प्रसून बाजपेयी, कार्यकारी संपादक, आजतक :
2002 का "अछूत" 2014 में "पारस" कैसे बन गया?
नरेंद्र मोदी ने 6 अक्टूबर 2001 में जब सीएम की कुर्सी संभाली उस वक्त मोदी ने सोचा भी नही था कि जिस सीएम की कुर्सी पर बने रहने के लिये उन्हें विधानसभा की सीट देने के लिये कोई तैयार नहीं है, वही सीएम की कुर्सी 12 बरस बाद उन्हें पीएम की कुर्सी का दावेदार बना देगी।
2014 के चुनावी लोकतंत्र में फर्जी वोटर का तंत्र
पुण्य प्रसून बाजपेयी, कार्यकारी संपादक, आजतक :
2014 के आम चुनाव में उतने ही नये युवा वोटर जुड़ गये हैं, जितने वोटरों ने देश के पहले आम चुनाव में वोट डाला था।
जनादेश के जश्न से पहले कद्दावर नेताओं की तिकड़म
पुण्य प्रसून बाजपेयी, कार्यकारी संपादक, आजतक :
1977 में देश की सबसे कद्दावर नेता इंदिरा गांधी को राजनारायण ने जब हराया तो देश में पहली बार मैसेज यही गया कि जनता ने इंदिरा को हरा दिया।
मोदी या केजरी, किसे पारस साबित करेगा बनारस?
पुण्य प्रसून बाजपेयी, कार्यकारी संपादक, आजतक :
खाक भी जिस जमी की पारस है, शहर मशहूर यह बनारस है। तो क्या बनारस पहली बार उस राजीनिति को नया जीवन देगा जिस पर से लोकतंत्र के सरमायेदारों का भी भरोसा डिगने लगा है।
भटकते राहुल गाँधी क्या खोज रहे हैं
पुण्य प्रसून बाजपेयी, कार्यकारी संपादक, आजतक :
देश के हर रंग को साथ जोड़कर ही कांग्रेस बनी थी और आज कांग्रेस के नेता राहुल गाँधी को कांग्रेस को गढ़ने के लिये देश के हर रंग के पास जाना पड़ रहा है।
बीजेपी को संघ पढ़ा रहा है राजनीति का ककहरा
पुण्य प्रसून बाजपेयी, कार्यकारी संपादक, आजतक
नरेन्द्र मोदी गुजरात के बाहर यूपी में चुनाव लड़ेंगे कहां से। इस पर फैसला बीजेपी या मोदी नहीं बल्कि संघ परिवार करेगा।
संघ की बिसात पर सोशल इंजीनियरिंग
पुण्य प्रसून बाजपेयी, कार्यकारी संपादक, आजतक
नरेंद्र मोदी, रामविलास पासवान और उदितराज। तीनों की राजनीतिक मजबूरी ने तीनों को एक साथ ला खड़ा किया है। या फिर तीनों के लाभालाभ ने एक दूसरे का हाथ थामने के हालात पैदा कर दिये हैं।