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चुन लीजिए, आपको क्या चाहिए!
क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :
पहला सवाल : अगर किसी सरकारी कर्मचारी, अफसर या न्यायिक अधिकारी को किसी अपराध के लिए सजा मिलती है, तो वह तो अपनी नौकरी पर कभी वापस नहीं रखा जा सकता, तो फिर ऐसा ही पैमाना राजनेताओं के लिए क्यों नहीं अपनाया जाना चाहिए? सजायाफ्ता नेता पर आजीवन रोक क्यों नहीं लगनी चाहिए?
गाड़ी सायरन बजाते गुजरे तो मानव धर्म का निर्वाह करें
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मैं अमेरिका के डेनवर शहर में था। वही डेनवर शहर, जहाँ शादी के बाद अपनी धक-धक गर्ल माधुरी दीक्षित भी रहती थीं।
माधुरी दीक्षित बेशक वहीं रहती थीं, पर आज मैं कहानी माधुरी दीक्षित की नहीं सुनाने जा रहा। आज मैं आपको जो कहानी सुनाने जा रहा हूँ, उसे सुन कर आप सोचने लगेंगे कि क्या सचमुच ऐसा होता है? पर क्योंकि मैं इस कहानी का चश्मदीद हूँ, इसलिए आप मेरी बात पर यकीन कीजिएगा कि मैं जो कुछ भी कह रहा हूँ, उसका एक-एक अक्षर सत्य है। क्योंकि यह कहानी आदमी की जिन्दगी से जुड़ी है, इसलिए आप इसे अधिक से अधिक लोगों तक साझा कीजिएगा। जितने लोगों को ये कहानी पता चलेगी, उतना फायदा हम सबका होगा।
प्रेम का उदय
प्रेमचंद :
भोंदू पसीने में तर, लकड़ी का एक गट्ठा सिर पर लिए आया और उसे जमीन पर पटककर बंटी के सामने खड़ा हो गया, मानो पूछ रहा हो 'क्या अभी तेरा मिजाज ठीक नहीं हुआ ? '
खुशियाँ बाँटते हैं कपिल
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
कल कपिल से मिला। कॉमेडी विद कपिल शर्मा वाले कपिल से।
प्यार का बँटवारा
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
दो दिन पहले मेरे पास एक मिस्त्री का फोन आया था। मैं उसे जानता था। तीन-चार साल पहले उसने मेरे घर में रंगाई-पुताई का काम किया था और तभी अपना नंबर मुझे दे गया था। मिस्त्री को पता था कि मैं पत्रकार हूँ। एक बार वो काम करके चला गया तो फिर मेरा उससे कोई संपर्क नहीं रहा।
मोटर के छींटे
प्रेमचंद :
क्या नाम कि... प्रात:काल स्नान-पूजा से निपट, तिलक लगा, पीताम्बर पहन, खड़ाऊँ पाँव में डाल, बगल में पत्रा दबा, हाथ में मोटा-सा शत्रु-मस्तक-भंजन ले एक जजमान के घर चला। विवाह की साइत विचारनी थी। कम-से-कम एक कलदार का डौल था। जलपान ऊपर से। और मेरा जलपान मामूली जलपान नहीं है। बाबुओं को तो मुझे निमन्त्रित करने की हिम्मत ही नहीं पड़ती।
सत्संग के दुष्परिणाम
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
सु-कंपनी नामक सज्जन ने गुरु-घंटाल अकादमी की मासिक समस्या-सुलझाओ गोष्ठी में अपनी समस्या यूँ रखी-मेरा नाम सु-कंपनी है, मैंने हमेशा सज्जनता आचरण किया है। शास्त्रोक्त सूत्रों के मुताबिक मैंने हमेशा उन्हे ही मित्र बनाया, जिनकी सज्जनता को लेकर मुझे कभी कोई शक ना रहा।
अब नहीं सोचेंगे, तो कब सोचेंगे?
कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार :
हाशिमपुरा और भी हैं ! 1948 से लेकर 2015 तक। कुछ मालूम, कुछ नामालूम ! जगहें अलग-अलग हो सकती हैं। वजहें अलग-अलग हो सकती हैं। घटनाएँ अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन चरित्र लगभग एक जैसा।
प्रशासनिक सुधार से न्यायिक सुधार होगा
सुशांत झा, पत्रकार :
गोविंदाचार्य जब कहते हैं कि सरकार जजों की संख्या बढ़ाने और त्वरित न्याय दिलाने के लिए 7000 करोड़ तक आवंटित करने को तैयार नहीं है, जबकि एयर इंडिया के लिए पिछली सरकार 30,000 करोड़ देने को तैयार थी तो उसमें कुछ और बातें जोड़नी आवश्यक है।