Tag: प्यार
मकान ले लो, मकान

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरे मित्र को एक मकान चाहिए। वैसे दिल्ली में उनके पिता जी ने एक मकान बनवाया है और अब तक वो उसमें उनके साथ ही रह रहे थे। लेकिन कुछ साल पहले उनकी शादी हो गयी और उन्हें तब से लग रहा है कि उन्हें अब अलग रहना चाहिए। मैंने अपने मित्र से पूछा भी कि पिताजी के साथ रहने में क्या मुश्किल है?
कमाई में सफेदी की दरकार

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
बहुत तेज बर्फबारी और कड़ाके की ठंड के बीच मैं अमेरिका के बफैलो एयरपोर्ट पर खड़ा था। मुझे वहाँ से फ्लोरिडा जाना था। आमतौर पर हम कहीं भी आते-जाते हैं तो पहले से विमान का टिकट खरीद चुके होते हैं, होटल और टैक्सी वगैरह की बुकिंग करा चुके होते हैं।
प्यार दो, प्यार लो

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
जबलपुर जाने का मतलब है कहानियों के संसार की यात्रा पर निकलना। एक कहानी खत्म हुई नहीं कि दूसरी शुरू। अब वहाँ कदम संस्था वालों ने इतने पेड़ लगा दिए हैं कि प्रकृति जबलपुर की मिट्टी चूमने लगी है। आसमान बादलों को मुहब्बत का पैगाम लेकर धरती के पास भेजने लगा है। ऐसा ही परसों हुआ था जब दिल्ली से उड़ा विमान जबलपुर एयरपोर्ट पर उतरने से घबराता रहा कि वहाँ तो धरती से मिलने बादल नीचे उतर आये हैं।
भाई की आँखों में चमक और बहन की आँखों में प्यार

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
माँ तीन दिनों के लिए पिताजी के साथ बाहर गई थी। मैं बिना माँ के एक दिन नहीं रह सकता था। माँ ने जाते हुए मुझसे दो साल बड़ी बहन को निर्देश दिया था कि संजू का ख्याल रखना। बहन चुपचाप खड़ी थी।
प्रेम, नफरत, तन्हाई और मिलन

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
सुबह जब नींद खुले तो अपने भीतर झाँकिए। मन की खिड़िकियों से देखिए कि कहीं आप अकेले तो नहीं।
डॉर्लिंग कह कर हाल पूछिए, प्यार का जोड़ टूटेगा नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कल दफ्तर में काम अधिक था। घर पहुँचने में देर हो गयी। हो सकता है कि पत्नी मन ही मन नाराज भी हो रही हो कि मैं सारा दिन दफ्तर में गुजार देता हूँ और इस चक्कर में दिल्ली के सभी मॉल्स में जो सेल लगी है, उसमें उसे नहीं ले जा पा रहा।
जिसे जो मिला, वही वो देगा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज पोस्ट लिखते हुए मुझे कई बार रुकना पड़ा।
प्यार, स्नेह और मान दें रिश्तों में प्रेम के अंकुर फूटेंगे

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मैं एक बहू से मिला हूँ। मैं एक सास से मिला हूँ।
दोनों में नहीं बनती। क्यों नहीं बनती मुझे नहीं पता। बहू का कहना है कि सास हर पल उसे नीचा दिखाती हैं।
सास कहती हैं कि बहू उसे पूछती नहीं।
मोतियों की तरह रिश्तों को संभालिए

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरे एक परिचित के दोनों बच्चे गर्मी की छुट्टियों में स्कूल से कहीं घूमने गये हैं। बच्चे हफ्ते भर से बाहर हैं, पति-पत्नी अकेले-अकेले बैठे रहते हैं, ऐसे में उन्होंने तय किया कि कुछ लोगों को घर बुलाया जाए, पार्टी की जाए। बहुत ही बेहतरीन आइडिया था। रोज-रोज की भाग-दौड़ भरी जिन्दगी से थोड़ी राहत मिलेगी और जिनसे पता नहीं कब से नहीं मिले, उनसे मिलना हो जाएगा।
आदमी सबकुछ के बिना रह सकता है, पर प्यार के बिना नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
अब शिफ्ट होने का समय आ गया है। समझ लीजिए कि आधा शिफ्ट हो भी गए। मैं चीजें बहुत खरीदता हूँ, पर मुझे चीजों से मोह नहीं। जाहिर है मैं बहुत सी चीजें यहीं पुराने घर में छोड़ जाऊंगा। इनका क्या होगा, क्या करूंगा, यह सब बाद में तय होगा।