Friday, November 22, 2024
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ज्ञान कभी व्यर्थ नहीं जाता

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

आज एक सुनी सुनाई कहानी सुनाता हूँ। 

वैसे भी कई लोगों ने मुझे फेसबुक वाला बाबा बुलाना शुरू कर दिया है। बाबा क्यों, ये मुझे नहीं पता। मेरे तो बाल भी अभी सफेद नहीं हुए पर कुछ लोगों को लगता है कि ज्ञान देने वाला बाबा ही होता है। मुमकिन है टीवी पर तमाम बाबाओं को ऐसी बातें करते देख उनके मन में ये भाव आया हो कि ज्ञान तो बाबा ही देते हैं।

फेसबुक के इस्तेमाल

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार  :

गुजरात की मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया पर इस्तीफा दिया। नेता चुन कर आता है जनता द्वारा, पर मुक्ति चाहता है फेसबुक द्वारा। फेसबुक के यूँ कई इस्तेमाल हैं- इस पर कविता, इश्क और इस्तीफा कुछ भी किया जा सकता है। यूँ कई लोग इस्तीफा और इश्क में असमर्थ होते हैं, तो फेसबुक पर कविता का अंबार दिखायी देता है।

फेसबुक का लाइकाचार

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार  :

जी मैं पुराने स्कूल का हूँ, कई महिला मित्र फेसबुक पर प्रोफाइल पिक अपडेट करती हैं, पर मैं उन्हे लाइक नहीं करता, मतलब लाइक करने का मन हो तो भी लाइक के सिंबल को क्लिक ना करता। सुंदर, बहुत स्मार्ट लिखने का दिल करता है, पर, पर उन्ही महिला मित्रों को बाक्सर भाई भी मेरे मित्र हैं, जो बरसों यह उद्घोषणा करते आ रहे हैं कि उनकी बहन की ओर आँख उठाकर भी किसी ने देखा तो उसे खल्लास कर देंगे। किसी महिला मित्र की फोटो को लाइक करने की इच्छा की क्षणों में वह बाक्सर भाई यह कहता दिख जाता है-अच्छा बेट्टे, मेरी बहन की तरफ ना सिर्फ तूने आँख उठाकर देखा, बल्कि उसे लाइक तक किया, आज निकलियो घर से।

माँ की गोद

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मुझे मरने से डर नहीं लगता। पर मर जाने में मुझे सबसे बुरी बात जो लगती है, वो ये है कि आप चाह कर भी दुबारा उस व्यक्ति से नहीं मिल सकते, जिससे मिलने की तमन्ना रह जाती है।

रिश्तों की तलाश

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

आज आपको बहुत से सवालों के जवाब मिल जाएँगे। 

रिश्तों को जीने वाले आँखों से जीते हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मेरे एक फेसबुक परिजन ने मुझसे शिकायत की कि संजय सिन्हा आप बहुत झूठ बोलते हैं।

मूँगफली खाते रोबोट

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :

वक्त तेजी से बदल रहा है, इंसान का संवाद मशीनों से ज्यादा और रूबरू-इंसानों से कम हो रहा है।

कौन लोग लतीफे बना रहे हैं पुरस्कारों के लौटाने पर

राकेश कायस्थ :

साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का जो सिलसिला चल रहा है, उसे लेकर फेसबुक पर हो रही लतीफेबाजी क्या दर्शाती है? आखिर वे कौन लोग हैं, जो चुटकले बना रहे हैं और तालियाँ पीटकर खुश हो रहे हैं? पुरस्कारों की वापसी का जो सिलसिला शुरू हुआ है, उसके पीछे कोई लंबी चौड़ी कहानी नहीं है। 

डिसलाइक और फेसबुक कवि

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :

जुकरबर्गजी फेसबुक पर डिसलाइक का विकल्प देनेवाले हैं, इस विकल्प से सबसे ज्यादा हैरान-परेशान फेसबुक कवि हैं। 

रवीश कुमार की पीड़ा

हरिशंकर राय, सह-प्राध्यापक :  रवीश कुमार की पीड़ा जिसे वे अपने ब्लॉग पर ऑनलाइन गुंडागर्दी कहते हैं के लिए मुझे उनके प्रति सहानुभूति है।...
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