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एटीएम और औकात

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
एटीएम औकात पहचानता है-उस दिन मैंने पाँच सौ रुपये एटीएम से निकाले, तो सौ-सौ के पाँच नोट निकले। यह नहीं कि एटीएम पाँच सौ का नोट निकाल देता। एटीएम सोचता है कि पाँच सौ रुपये के लिए मेरे होल में आया यह बंदा, एक झटके में ही पाँच सौ खर्चने की औकात और जरूरत ना होगी इसकी, सौ-सौ के नोट ही देना बेहतर। वरना पाँच सौ के छुट्टे कराने में और परेशान होगा।
विकास की बाँसुरी, फ़ासिस्ज़्म के तम्बू!

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार :
रोहित वेमुला ने आत्महत्या क्यों की? वह कायर था? अवसाद में था? जिन्दगी से हार गया था? उसके मित्रों ने उसकी मदद की होती, तो उसे आत्महत्या से बचाया जा सकता था? क्या उसकी आत्महत्या के ये कारण थे? नहीं, बिलकुल नहीं।
नयनतारा से मुनव्वर एक डूबते हुए वंश को बचाने के लिए हुए क्रांतिकारी

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
अब आप इसे सेक्युलरिज्म की लड़ाई कहें, अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले के खिलाफ सघर्ष कहें या बढ़ती असहिष्णुता का विरोध... नयनतारा सहगल से लेकर मुनव्वर राणा तक आते-आते यह साफ हो चुका है कि बिहार चुनाव के ठीक बीच लेखकों का “पुरस्कार लौटाओ अभियान” पूर्णतः सियासी है। जिन डिजर्विंग और नॉन-डिजर्विंग लेखकों पर अतीत में अहसान किये गये, आज एक डूबते हुए वंश को बचाने और देश में राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने के लिए उनका इस्तेमाल किया जा रहा है।
सेकंड सेक्स, प्लीज देखो सेंसेक्स

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
वैधानिक चेतावनी-यह व्यंग्य नहीं है
POWER AND FREEDOM FLOWS FROM THE LAYERS OF PURSE-प्रोफेसर सैमुअल बायरन का यह स्टेटमेंट बहुत यथार्थवादी है। ताकत और स्वतंत्रता पर्स से बहती हैं।