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बालक

प्रेमचंद :
गंगू को लोग ब्राह्मण कहते हैं और वह अपने को ब्राह्मण समझता भी है। मेरे सईस और खिदमतगार मुझे दूर से सलाम करते हैं। गंगू मुझे कभी सलाम नहीं करता। वह शायद मुझसे पालागन की आशा रखता है। मेरा जूठा गिलास कभी हाथ से नहीं छूता और न मेरी कभी इतनी हिम्मत हुई कि उससे पंखा झलने को कहूँ। जब मैं पसीने से तर होता हूँ और वहाँ कोई दूसरा आदमी नहीं होता, तो गंगू आप-ही-आप पंखा उठा लेता है; लेकिन उसकी मुद्रा से यह भाव स्पष्ट प्रकट होता है कि मुझ पर कोई एहसान कर रहा है और मैं भी न-जाने क्यों फौरन ही उसके हाथ से पंखा छीन लेता हूँ।
पोर्न साइट्स का ज्ञान

विकास मिश्रा, आजतक :
तब मेरी उम्र करीब 9-10 साल रही होगी। घर में बड़े भइया की पहली संतान का जन्म हुआ था। बेटा हुआ था और ये खबर मुझे स्कूल में मिली थी। उससे पहले हमें पता तक नहीं था कि भाभी संतान को जन्म देने वाली हैं। घर पहुँचे तो खुशियाँ अपरम्पार।
सोच में बदलाव

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कल मैंने लिखा था कि मुझसे मेरे एक परिचित ने पूछा था कि फेसबुक पर रोज लिख कर मैं अपना समय क्यों जाया करता हूँ, तो मैंने बता दिया था कि यही वो मेला है, जहाँ मुझे अपने सारे खोया हुए रिश्ते मिले हैं।
यादें – 11

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
एक राजा था। दुष्ट और महामूर्ख था। एकबार एक साधु ने उसे दिव्य वस्त्र दिया और कहा कि ये ऐसा वस्त्र है, जो सिर्फ उसी व्यक्ति को नजर आयेगा, जिसकी आत्मा में छल-कपट न हो, जो अच्छा व्यक्ति हो। ऐसा कह कर उसने राजा के सारे कपड़े उतरवा दिये और उसे दिव्य वस्त्र पहना दिया।
अपने-अपने रिश्तों का बोध होना चाहिए

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
पत्नी धीरे से आकर कान में फुसफुसाई कि शायद वो माँ बनने वाली है।
ट्रेन की रफ्तार बहुत तेज थी। मैं ऊपर बर्थ पर लेट कर किताब पढ़ रहा था।