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राजीव थे भारत के सबसे सांप्रदायिक प्रधानमंत्री!
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
मानसिक और वैचारिक तौर पर दिवालिया हो चुके जिन लोगों को 1984 के दंगों में 3 दिन के भीतर 3,000 लोगों का मार दिया जाना भीड़ के उन्माद की सामान्य घटना नजर आती है, उन्हीं लोगों ने, गुजरात दंगे तो छोड़िए, उन्मादी भीड़ द्वारा दादरी में सिर्फ एक व्यक्ति की हत्या को देश में असहिष्णुता का महा-विस्फोट करार दिया था।
कहाँ छिप गए वे सेक्युलर, मानवतावादी!
पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
क्यों नहीं पुरस्कार लौटाए जा रहे? चुप्पी क्यों ?
मालदा के बाद पूर्णिया! यह हो क्या रहा है? क्या सहिष्णुता सिर्फ उस बहुसंख्यक वर्ग के लिए ही है जिसको पंद्रह मिनट में काट देने की मंच से घोषणा करने वाले शख्स के आजादी के बाद दिये गये सबसे उकसावे वाले बयान के बावजूद देश की सेहत प्रभावित हुई? क्या कहीं हिंसा की खबरें आयी? क्या कहीं कानून-व्यवस्था को परेशानी हुई? नहीं न, क्योंकि सनातन धर्मी स्वभाव से सहनशील है। उसके शब्दकोश में नफरत या घृणा शब्द ही नहीं है।
ध्रुवीकरण करने वाले नेताओं और एजेंट बुद्धिजीवियों से सावधान!
अभिरंजन कुमार :
मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि इस देश के आम, गरीब, अनपढ़, कम पढ़े-लिखे, ग्रामीण लोग धर्मनिरपेक्ष हैं, लेकिन प्रायः सभी राजनीतिक दल, नेता, बुद्धिजीवी, पढ़े-लिखे और शहरी लोग सांप्रदायिक हैं।