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शहाबुद्दीनवादी सरकार क्या समझेगी शहादत का मोल…

अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
बिहार के अमर शहीद अशोक सिंह की पत्नी और हमारी बहन संगीता ने शहीदों को दिए जाने वाले मुआवजों को लेकर जो सवाल उठाए हैं, उसने हमारी कई सरकारों और राजनीतिक दलों की बेशर्मी और फूहड़पने की पोल खोल कर रख दी है।
चेत जाइये नहीं तो कुछ भी नहीं होगा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज चौथा दिन है जब बुखार ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा है। बुखार क्यों हुआ, नहीं पता। मैंने खाने-पीने में ऐसी कोई बदपरहेजी नहीं की। पर बुखार हो गया। एक दिन का बुखार होता है तो पत्नी की सेवा से ठीक हो जाता हूँ। दो दिन का बुखार होता है तो बिस्तर पर लेटे-लेटे ऊटपटांग सपने देखने लगता हूँ। तीसरे दिन तो डॉक्टर को दिखला ही लेना चाहिए। क्रोसिन और कालपोल से तीसरे दिन काम नहीं चलाना चाहिए। तो कल मैं डॉक्टर को दिखला आया।
हम अंदर की कमजोरियाँ हारते हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरी एक परिचित ने मुझे बताया कि उनकी बेटी, जिसकी शादी उन्होंने कुछ ही दिन पहले एक अमीर घर में की थी, वो किसी और से प्यार करने लगी है। जाहिर है शादी के बाद बेटी का किसी और से प्यार करना मेरी परिचित को नागवार गुजर रहा है। उन्होंने अपनी तकलीफ मुझसे साझा की। उनकी तकलीफ अब मेरी तकलीफ बन गयी है। मैं सारी रात सोचता रहा कि मैं इस विषय पर लिखूँ या नहीं।
‘फेरिहा’

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
'फेरिहा' एक चौकीदार की बेटी का नाम है। टर्की में रहने वाली फेरिहा मेहनत और लगन से अच्छे कॉलेज में दाखिला पा लेती है और खूब पढ़ना चाहती है। लेकिन उसके पिता को उसकी शादी की चिंता है। उन्होंने अपनी बिरादरी और हैसियत जैसे एक परिवार के लड़के को फेरिहा के लिए पसंद कर रखा है। पिता की निगाह में वही लड़का फेरिहा के लिए उपयुक्त है। वो जानते हैं कि वो लड़का भी फेरिहा को पसंद करता है, उसकी सुंदरता पर मरता है।
तेंतर

प्रेमचंद :
आखिर वही हुआ जिसकी आशंका थी; जिसकी चिंता में घर के सभी लोग विशेषतः प्रसूता पड़ी हुई थी। तीन पुत्रों के पश्चात् कन्या का जन्म हुआ। माता सौर में सूख गयी, पिता बाहर आँगन में सूख गये, और पिता की वृद्धा माता सौर द्वार पर सूख गयीं। अनर्थ, महाअनर्थ ! भगवान् ही कुशल करें तो हो ? यह पुत्री नहीं राक्षसी है। इस अभागिनी को इसी घर में आना था ! आना ही था तो कुछ दिन पहले क्यों न आयी। भगवान् सातवें शत्रु के घर भी तेंतर का जन्म न दें।
बहन की पाती भाइयों के नाम : अगले साल जरूर आना

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :
हम चार भाइयों के परिवार में कुल छह बेटे और छह बेटियों में सबसे छोटी है श्वेता। बीस बरस की श्वेता राखी के दिन उदास थी। अकेले कमरें में आँसुओं के बीच उसने अपना दर्द कविता में उड़ेल दिया। छह मे तीन भाई विदेश में तो बचे तीन दूसरे शहरों में। चिकन पाक्स हो जाने से बंगलोर में निफ्ट से फैशन डिजाइनिंग कर रही श्वेता हास्टल से बाहर नहीं निकली। डर था कि घर जाने से माँ इन्दिरा, भाभी रिंकू, भतीजी मिहिका और भतीजा प्रांशु भी कहीं चेचक की चपेट में न आ जाएँ।
बेटियों से उजाला होता है

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
अपने एक परिचित का हालचाल पूछने के लिए मुझे कल दिल्ली के मैक्स अस्पताल में जाना पड़ा। वहाँ ऑपरेशन थिएटर के पास मैं अपने परिचित के बाहर आने का इंतजार कर रहा था। एक-एक कर कई मरीज स्ट्रेचर पर बाहर लाये जा रहे थे। मैं सभी मरीजों और उनके परिजनों को गौर से देखता। जैसे ही कोई मरीजा बाहर आता, उनके परिजनों के चेहरे खिल उठते। डॉक्टर बाहर आकर पूछता कि क्या आप फलाँ के साथ हैं?
पैसा और शांति

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरी एक परिचित इन दिनों बहुत परेशान है और मुझसे मदद चाहती हैं। मैं दिल से उनकी मदद करना चाहता हूँ, लेकिन कुछ कर नहीं पा रहा।