Tag: भरोसा
युवा ही लाएंगे हिंदी समय!

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
अब लडाई अंग्रेजी को हटाने की नहीं हिंदी को बचाने की है
सरकारों के भरोसे हिंदी का विकास और विस्तार सोचने वालों को अब मान लेना चाहिए कि राजनीति और सत्ता से हिंदी का भला नहीं हो सकता। हिंदी एक ऐसी सूली पर चढ़ा दी गयी है, जहां उसे रहना तो अंग्रेजी की अनुगामी ही है। आत्मदैन्य से घिरा हिंदी समाज खुद ही भाषा की दुर्गति के लिए जिम्मेदार है।
अपने पँखों पर भरोसा रखिए

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
एक नौजवान हाथ में शीशे की गिलास लेकर लोगों से पूछ रहा था कि क्या मुझे कोई बता सकता है कि इसे किसने बनाया? लोग उसके सवाल को नहीं समझ पा रहे थे कि वो ऐसा क्यों पूछ रहा है। पर किसी ने कहा कि इसे आदमी ने बनाया है। नौजवान हँसा और फिर उसने पूछा कि आपने जो कपड़े पहन रखे हैं, क्या आप जानते हैं उन्हें किसने बनाया है?
प्रेम एक विश्वास और भरोसा है
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरी समझ में आज तक ये बात नहीं आयी कि क्यों मेरी कुछ पोस्ट को तीन हजार लाइक मिलते हैं, और कुछ पोस्ट को सिर्फ पाँच सौ लाइक।
‘फेरिहा’

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
'फेरिहा' एक चौकीदार की बेटी का नाम है। टर्की में रहने वाली फेरिहा मेहनत और लगन से अच्छे कॉलेज में दाखिला पा लेती है और खूब पढ़ना चाहती है। लेकिन उसके पिता को उसकी शादी की चिंता है। उन्होंने अपनी बिरादरी और हैसियत जैसे एक परिवार के लड़के को फेरिहा के लिए पसंद कर रखा है। पिता की निगाह में वही लड़का फेरिहा के लिए उपयुक्त है। वो जानते हैं कि वो लड़का भी फेरिहा को पसंद करता है, उसकी सुंदरता पर मरता है।
खुद पर भरोसा

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
माँ कहती थी कि वो लोग किसी काम के नहीं होते जो खुद पर भरोसा नहीं करते, खुद की इज्जत नहीं करते। माँ मुझे ऐसे लोगों से दूर रहने की सलाह दिया करती थी जो खुद को कोसते हैं। वो कहती थी कि दुनिया को जीतना उतना मुश्किल नहीं होता, जितना खुद को जीतना होता है।
टूटे भरोसे को जोड़ने और आम नागरिकों के आत्मविश्वास की है मोदी सरकार

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
नरेन्द्र मोदी सरकार के एक साल पूरे होने पर मीडिया में विमर्श, संवाद और विवाद निरन्तर है।
सही नीयत और संपूर्ण भरोसे से होता है काम सफल

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
दो दिन बाद मेरी शादी होनी थी।
मैंने किसी से पूछा नहीं था, खुद ही तय कर लिया था कि शादी 20 अप्रैल को होगी। कैसे होगी, कौन कराएगा, होगी कि नहीं होगी, ये मेरे सोचने की ही बात थी, लेकिन मैं सोच नहीं रहा था।
सब कुछ हार जाओ, पर भरोसा नहीं हारना चाहिए

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
रावण हंस रहा था। खुशी के मारे उछल-उछल कर हंस रहा था।
"सीता, तुम्हें बहुत घमंड था न अपने राम पर। तुम इतराती थी न अपने देवर लक्ष्मण की शक्ति पर! जाओ खुद अपनी आँखों से देखो। देखो कैसे तुम्हारे पति राम और तुम्हारे देवर लक्ष्मण, दोनों हमारे पुत्र इंद्रजीत के हाथों मारे गये। हमारे पुत्र ने उन्हें सर्पबाणों से भेद दिया है।
भरोसे की नाव पर चलते हैं ‘रिश्ते’

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
माइक्रोस्कोप से मेरा पहला पाला दसवीं कक्षा में पड़ा था। मेरे टीचर ने मुझे वनस्पति शास्त्र की पढ़ाई में पहली बार प्याज के एक छिलके को माइक्रोस्कोप में डाल कर दिखाया था कि देखो माइक्रोस्कोप में ये कैसा दिखता है।