Monday, September 15, 2025
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इस हार का मतलब क्या है?

डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :

चार राज्यों में हुए उपचुनावों में भाजपा की वैसी दुर्गति तो नहीं हुई, जैसी उत्तराखंड में हुई थी याने कोई राज्य ऐसा नहीं है, जहाँ भाजपा या उसकी सहयोगी पार्टी जीती न हो।

नेता विपक्ष- परंपरा, धारा और भावना का इम्तहान

रवीश कुमार, वरिष्ठ टेलीविजन एंकर :

किसी भी लोकतंत्र की प्रतिनिधि संस्था में विपक्ष और उसके नेता की भूमिका भी साफ साफ होनी चाहिए। मौजूदा लोकसभा के संदर्भ में नेता विपक्ष को लेकर जो विवाद हो रहा है और उस पर जो लेख लिखे जा रहे हैं उन सभी को पढ़ते हुए यही लग रहा है कि नेता विपक्ष को लेकर स्पष्ट व्याख्या नहीं है।

बड़ी कुर्सी और बड़ा आदमी!

डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :

प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी रोज ही एक-दो काम ऐसे कर रहे हैं कि जिनकी सराहना किए बिना नहीं रहा जा सकता। मोदी का निर्देश था कि मंत्री और सांसद अपने रिश्तेदारों को निजी सहायक बनाना बंद करें। इस निर्देश का तत्काल असर हुआ।

शपथः कुछ दूसरे पहलू

डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :

भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का यह ऐतिहासिक दिन है, जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और उनके मंत्रिमंडल ने भी। इस मंत्रिमंडल में उनके संसदीय दल का लगभग सही प्रतिनिधित्व हुआ है लेकिन फिर भी मोटी-मोटी कुछ कमियाँ भी दिखायी पड़ती हैं।

मोदी की छवि में चार चाँद

डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :

प्रधानमंत्री पद के लिए नेता पद स्वीकार करते समय नरेंद्र मोदी ने संसद के केंद्रीय कक्ष में जो भाषण दिया, उसने मोदी की छवि में चार चाँद लगा दिए हैं।

क्यों अलोकतांत्रिक है आनंदी बेन के चयन का तरीका

राजीव रंजन झा :

नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और उन्हें मिले विशाल जनादेश की ओट में आनंदी बेन पटेल का मुख्यमंत्री चुना जाना लोकतांत्रिक परंपरा के बारे में कुछ सवाल खड़े कर जाता है।

संघ सिस्टम बनाम नो सिस्टम

रवीश कुमार, वरिष्ठ टेलीविजन एंकर :

आखिर कौन नहीं चाहता था कि कांग्रेस हारे। सीएजी रिपोर्ट और लोकपाल आंदोलन के वक्त दो साल तक कांग्रेस ने जिस अहंकार का प्रदर्शन किया क्या उसकी सजा मिलने पर जश्न नहीं होना चाहिए।

चुनावी नतीजों पर याद आती कुछ पुरानी बातें

राजीव रंजन झा :

लोक सभा चुनाव में भाजपा को अकेले अपने दम पर बहुमत पाने के बाद मुझे बीते साल दो तीन साल में लिखी अपनी बहुत-सी पुरानी बातें याद आ रही हैं। क्या भूलूँ क्या याद करूँ? ...क्या-क्या गिनाऊँ?

चुनाव के बाद सोशल मीडिया पर हास परिहास का दौर

लोक सभा चुनाव के बाद सोशल मीडिया पर हास परिहास भी चरम पर है। एक से बढ़ कर एक मजाकिया टिप्पणियाँ फैल रही हैं। इनमें से किस टिप्पणी या चुटकुले को सबसे पहले किसने लिखा, यह खोज पाना तो संभव नहीं लगता।

सोलह मई

रवीश कुमार, वरिष्ठ टेलीविजन एंकर :

नतीजा आ गया। वैसा ही आया जैसा आने की बात बीजेपी कह रही थी। इस नतीजे का विश्लेषण नाना प्रकार से होगा, लेकिन जनता ने तो एक ही प्रकार से फ़ैसला सुना दिया है। उसने गुजरात का मॉडल भले न देखा हो मगर उस मॉडल के बहाने इतना तो पता है कि चौबीस घंटे बिजली मिलने में किसे एतराज है।

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