Monday, September 15, 2025
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कितने करोड़ का है बीजेपी का अभियान?

अखिलेश शर्मा, वरिष्ठ संपादक (राजनीतिक), एनडीटीवी :

बीजेपी का प्रचार अभियान इस बार जितना बड़ा है शायद उतना पहले कभी नहीं रहा है। इसका विस्तार टेलीविजन, अखबार, रेडियो और सड़कों पर लगे होर्डिंग में दिख रहा है।

बन जाने दीजिए ना मोदी को प्रधानमंत्री !

नदीम एस. अख्तर, शिक्षक, आईआईएमसी :

नरेंद्र मोदी के पीएम बनने पर इतनी हाय-तौबा क्यों??!! बन जाने दीजिए ना प्रधानमंत्री। ये जरूरी है।

दिल्ली वाया पूर्वांचल

अखिलेश शर्मा, वरिष्ठ संपादक (राजनीतिक), एनडीटीवी :

भीड़ पचास हजार थी, एक लाख या तीन लाख? लोग स्थानीय थे या बाहरी? लोग आये थे या लाये गये थे? इन तमाम सवालों पर लोग अपनी-अपनी आस्था, विश्वास और विचारधारा के हिसाब से चाहे बहस करते रहें।

बीजेपी-मुलायम ही सही मायने में मिले हुए

विकास मिश्रा, आजतक :

बात 1990 की है। इलाहाबाद के सलोरी मुहल्ले में सालाना उर्स था मजार पर। बहुत मजा आ रहा था। कव्वाल झूम झूमकर गा रहे थे।

क्या वाकई इकतरफा चुनाव होगा बनारस में?

पीयूष श्रीवास्तव, पत्रकार :

भगवा टोपी, सफेद टोपी, लाल टोपी... जिधर देखो टोपी ही टोपी। न टोपी पहनने वालों की कमी, न ही टोपी पहनाने वालों की कमी। हालत यह है कि जिसे देखो वही टोपी पहनने की होड़ में है।

नरेंद्र मोदी की निर्भीकता

डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :

चुनाव-अभियान के दौरान नरेंद्र मोदी जितनी निर्भीकता दिखा रहे हैं, शायद आज तक किसी पार्टी अध्यक्ष या प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार ने नहीं दिखायी।

बिहटा 7.86

अखिलेश शर्मा, वरिष्ठ संपादक (राजनीतिक), एनडीटीवी :

पटना पीछे छूट गया है। गाड़ी तेज़ी से बनारस की ओर भाग रही है। सड़क के दोनों ओर खेतों की हरियाली अब सोने में बदल चुकी है। गेहूं कटने लगा है।

ओबामा के पद चिह्नों पर मोदी का प्रचार

रवीश कुमार, वरिष्ठ टेलीविजन एंकर :

अमरीका में 2008 में राष्ट्रपति का चुनाव हो रहा था। ओबामा अपने विज्ञापन की टीम के साथ बातचीत कर रहे थे। एक बड़े बैंकिंग फर्म के ध्वस्त होने की अफवाह जोरों पर थी।

कभी साजिश के तहत दिल्ली से गुजरात भेजे गये थे मोदी !

पुण्य प्रसून बाजपेयी, कार्यकारी संपादक, आजतक :

'भागवत कथा' के नायक मोदी यूँ ही नहीं बने। क्या नरेंद्र मोदी के विकास मॉडल के पीछे आरएसएस ही है। क्या आरएसएस के घटते जनाधार या समाज में घटते सरोकार ने मोदी के नाम पर संघ को दाँव खेलने को मजबूर किया।

आजादी के बाद मुसलमानों की अग्नि-परीक्षा !

पुण्य प्रसून बाजपेयी, कार्यकारी संपादक, आजतक :

1952 में मौलाना अब्दुल कलाम आजाद को जब नेहरु ने रामपुर से चुनाव लड़ने को कहा तो अब्दुल कलाम ने नेहरु से यही सवाल किया था कि उन्हें मुस्लिम बहुल रामपुर से चुनाव नहीं लड़ना चाहिये।

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