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मनसुख मांडविया की अंग्रेजी का उपहास करती गुलाम मानसिकता
राजनीति के बिगड़े बोल
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
भारतीय राजनीति में भाषा की ऐसी गिरावट शायद पहले कभी नहीं देखी गयी। ऊपर से नीचे तक सड़कछाप भाषा ने अपनी बड़ी जगह बना ली है। ये ऐसा समय है जब शब्द सहमे हुए हैं, क्योंकि उनके दुरूपयोग की घटनाएं लगातार जारी हैं। राजनीति जिसे देश चलाना है और देश को रास्ता दिखाना है,वह खुद गहरे भटकाव की शिकार है।
‘प्रेतलेखन’ और अनुवाद
सुशांत झा, पत्रकार :
मेरे एक मित्र ने पूछा कि 'प्रेत लेखन'(Ghost writing) की क्या कीमत होनी चाहिए? मैंने कहा, "प्रेत किसका है?" वो मुस्कुराया। मैंने कहा कि तुम्हारी मुस्कुराहट बताती है कि प्रेत मालदार है और अपना आदमी है।
रिश्तों का पाठ
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मेरी माँ की तबियत जब बहुत खराब हो गयी थी तब पिताजी ने मुझे पास बिठा कर बता दिया था कि तुम्हारी माँ बीमार है, बहुत बीमार। मैं आठ-दस साल का था। जितना समझ सकता था, मैंने समझ लिया था। पिताजी मुझे अपने साथ अस्पताल भी ले जाते थे। उन्होंने बीमारी के दौरान मेरी माँ की बहुत सेवा की, पर उन्होंने मुझे भी बहुत उकसाया कि मैं भी माँ की सेवा करूं।
बौद्धिक विमर्शों से नाता तोड़ चुके हैं हिन्दी के अखबार
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्याल
हिन्दी पत्रकारिता को यह गौरव प्राप्त है कि वह न सिर्फ इस देश की आजादी की लड़ाई का मूल स्वर रही, बल्कि हिन्दी को एक भाषा के रूप में रचने, बनाने और अनुशासनों में बांधने का काम भी उसने किया है। हिन्दी भारतीय उपमहाद्वीप की एक ऐसी भाषा बनी, जिसकी पत्रकारिता और साहित्य के बीच अंतसंर्वाद बहुत गहरा था।