Friday, November 22, 2024
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माँ की गोद

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मुझे मरने से डर नहीं लगता। पर मर जाने में मुझे सबसे बुरी बात जो लगती है, वो ये है कि आप चाह कर भी दुबारा उस व्यक्ति से नहीं मिल सकते, जिससे मिलने की तमन्ना रह जाती है।

प्यार के बीज

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मेरी तीन नानियाँ थीं। तीन नहीं, चार। 

चार में से एक नानी मेरी माँ की माँ थी और बाकी तीन मेरी माँ की चाचियाँ थीं। माँ तीनों चाचियों को बड़की अम्मा, मंझली अम्मा और छोटकी अम्मा बुलाती थी, इसलिए माँ की तीनों अम्माएँ मेरी बड़की नानी, मंझली नानी और छोटकी नानी हुईं। बचपन में मुझे ऐसा लगता था कि चारों मेरी माँ की माँएं हैं और इस तरह मेरी चार नानियाँ हैं। पर मैंने पहली लाइन में ऐसा इसलिए लिखा है कि मेरी तीन नानियाँ थीं, क्योंकि मेरी माँ की माँ के इस दुनिया से चले जाने के बाद मुझे अपनी उन तीन नानियों के साथ रहने का ज्यादा मौका मिला, जो माँ की चाचियाँ थीं। 

माँ सत्य है, माँ सार्वभौमिक है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मैं अपनी माँ का बेटा हूँ। 

कल मुझसे किसी ने पूछ लिया कि मेरी माँ का क्या नाम था। मैं थोड़ी देर तक सोचता रहा। मेरी माँ का नाम क्या था? क्या माँ का भी कोई नाम होता है? नाम तो पिता का होता है। पिता को नाम की जरूरत होती है। पिता को प्रमाण की जरूरत होती है। माँ तो सत्य है। माँ सार्वभौमिक है। 

रिश्तों की विरासत

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

अब आप सोच रहे होंगे कि संजय सिन्हा के मन में सुबह-सुबह लड्डू क्यों फूट रहे हैं। तो मैं आज आपको ज्यादा नहीं उलझाऊँगा। 

माँ हर मुसीबत से बचाती है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

पिछले कई दिनों से मुझे खाँसी थी। दिन भर तो ठीक रहता, पर रात में खाँसी आती तो नींद खुल जाती। 

महिलाओं में ईश्वर का निवास है

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक : 

जाती हुई सर्दी बहुत बुरी होती है। जाते-जाते छाती से चिपक गयी है। 

रिश्तों का पाठ

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक : 

मेरी माँ की तबियत जब बहुत खराब हो गयी थी तब पिताजी ने मुझे पास बिठा कर बता दिया था कि तुम्हारी माँ बीमार है, बहुत बीमार। मैं आठ-दस साल का था। जितना समझ सकता था, मैंने समझ लिया था। पिताजी मुझे अपने साथ अस्पताल भी ले जाते थे। उन्होंने बीमारी के दौरान मेरी माँ की बहुत सेवा की, पर उन्होंने मुझे भी बहुत उकसाया कि मैं भी माँ की सेवा करूं। 

चाहत में शिद्दत हो तो कुछ भी असंभव नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मेरा नाम एंजो फेरारी नहीं है। मेरा नाम संजय सिन्हा है। 

पर एंजो फेरारी की माँ भी एंजो को वैसे ही कहानियाँ सुनाया करती थीं, जैसे मेरी माँ मुझे सुनाया करती थी।

रिश्ते मन के भाव से सुधरते हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

कल रात मुझे एक लड़की ने फोन किया और रोने लगी। मैं बहुत देर तक समझ नहीं पाया कि आखिर माजरा क्या है। मैं चुपचाप उस तरफ से रोने की आवाज सुनता रहा, फिर जब वो जरा शांत हुई, तो मैंने पूछा कि आप कौन हैं और क्यों रो रही हैं?

मैं ‘माँ’ बनूँगा

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

आज मेरा एक बहुत बड़ा सपना पूरा होने जा रहा है। अब से कुछ देर बाद मुझे 'माँ' बनने का सौभाग्य मिलेगा। 

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