Friday, November 22, 2024
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आइए खूबियाँ ढूँढते हैं

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मैंने कल लिखा था न कि मेरी मुलाकात दिल्ली वाले लड़के से होगी। 

अलग लोगों की होती हैं कहानियाँ

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

“माँ, आज कौन सी कहानी सुनाओगी?”

खाना मन माफिक और पहनना जग माफिक हो

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

दीदी की जब शादी हुई थी, तब उसे ही शादी का मतलब नहीं पता था। अब उनकी शादी हो गयी, तो वो साल भर बाद ही माँ भी बन गयीं। दीदी की शादी में मेरी उम्र उतनी ही थी, जिस उम्र में बच्चे आँगन में लगे हैंडपंप पर खड़े हो कर सार्वजनिक स्नान कर लेते हैं।

तैयारी खुशियों की

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

वैसे तो माँ रोज पूरे घर को खूब साफ करती थी, लेकिन दिवाली के मौके पर वो एक-एक चीज को उठा कर साफ करती। घर के सारे पँखें साफ करती, पूरे घर को धोती।

हर महिला में माँ छुपी होती है

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

छोटा था तो मेरे स्कूल जाने से पहले माँ जाग जाती थी। चाहे रात को सोने में उसे कितनी भी देर हुई हो, पर वो मुझसे पहले उठ कर मेरे लिए नाश्ता तैयार करती, लंच बॉक्स सजाती, मेरी यूनिफॉर्म प्रेस करती और फिर मुझे प्यार से ऐसे जगाती कि कहीं अगर मैं कोई सपना देख रहा होऊँ तो उसमें भी खलल न पड़ जाए। मैं जागता, रजाई मुँह के ऊपर नीचे करता, फिर सोचता कि रोज सुबह क्यों होती है, रोज स्कूल क्यों जाना पड़ता है, रोज भरत मास्टर को वही-वही पाठ पढ़ कर क्यों सुनाना पड़ता है। मुझे लगता था कि स्कूल को मंदिर की तरह होना चाहिए, जिसकी जब श्रद्धा हो चला जाए। 

बदलाव ही जीवन है

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

दशहरा के महीना भर पहले हमारे घर में सुगबुगाहट शुरू हो जाती थी। मुझे नहीं पता कि घर के बाकी लोग दशहरा का इंतजार क्यों करते थे, पर मैं दशहरा का इंतजार नहीं करता था। माँ सुबह से ही ढेर सारी खाने-पीने की चीजें बनाने में जुट जाती, पिताजी पूजा की तैयारी करते। लेकिन दशहरा का दिन मेरे लिए उदासी का सबब होता। हालाँकि दशहरा पर नये कपड़े पहनने को मिलते थे, पर मेरा मन यह सोच कर उदास रहता कि आज दुर्गा जी की मूर्ति उठ जाएगी, आज उसे नदी में बहा दिया जाएगा और पिछले नौ दिनों से जो उत्सव चल रहा था, वो खत्म हो जाएगा। 

बेटा, जी लो जिन्दगी

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

यह कहानी किसी की आप बीती हो सकती है।

मैं हिन्दू हूँ

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मेरी कल की पोस्ट पर एक परिजन ने अपने कमेंट में मुझसे पूछा है, “भारत में कौन सी हिन्दू माँ अपने बेटे को ईसा मसीह की कहानी सुनाती है? ज्यादातर माँएँ तो यह भी नहीं जानती कि ईसा कौन आदमी था? आपने झूठी पोस्ट लिखी है। और माँ द्वारा कहानी तो गांधीजी की भी नहीं सुनाई जाती। भैया कौन से ग्रह से आए हो?”

***

खुशियाँ बाँटते हैं कपिल

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

कल कपिल से मिला। कॉमेडी विद कपिल शर्मा वाले कपिल से। 

प्यार से बढ़ कर संसार में कोई संपति नहीं

संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

कभी-कभी मैं स्कूल से घर आता और खाना नहीं खाता था। माँ मुझसे कहती रहती कि हाथ धोकर खाना खाने बैठ जाओ बेटा, पर मैं माँ की बात अनसुनी कर देता। माँ आती, मुझे दुलार करती और कहती कि मेरे राजा बेटा को क्या हो गया है, क्यों चुप है। माँ और पुचकारती। फिर मैं खुश होकर खाना खाने बैठ जाता, माँ मुझे तोता-मैना कह कर खिलाने बैठ जाती।

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