Tag: माँ
आगे बढ़ते हम, पीछे छूटते अपने
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरे पड़ोस वाली रेखा दीदी की शादी मेरी जानकारी में सबसे पहले चाँद के पास वाले ग्रह के एक प्राणी से हुई थी।
98.88% पर फेल
आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
कभी सोचता हूँ कि सही टाइम पर धरती पर आ गये, और बहुत पहले ही स्कूल की शिक्षा से पार हो गये, इज्जत बच गयी।
ये वक्त गुजर जाएगा
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
रोज सुबह जगना और फिर लिखना मेरे नियम में शुमार हो चुका है।
लक्ष्मी जी के आगे सब नतमस्तक
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
माँ की सुनाई सभी कहानियाँ मैं एक-एक कर आपके साथ साझा कर रहा हूँ।
मुझे बहुत बार आश्चर्य भी होता है कि माँ को कैसे इतनी कहानियाँ याद रहती थीं।
अपने कर्म के सिद्धान्त को अमल में लायें
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
माँ, कल आपने कहा था कि मैं बहुत सी कहानियाँ सुनाऊँगी।”
“हाँ-हाँ, क्यों नहीं। अपने राजा बेटा को नहीं सुनाऊँगी तो किसे सुनाऊँगी।
भाव महत्वपूर्ण हो तो ‘मरा’ भी ‘राम’ होगा
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
मैंने बात सिर्फ अच्छे और बुरे पैसे की थी। मैंने सिर्फ इतना ही कहने की कोशिश की थी कि जिस तरीके से मनुष्य धन अर्जित करता है, वो तरीका ही धन की गुणवत्ता तय करता है। मैं जानता हूँ कि ये एक लंबे विवाद का विषय है। विवाद से भी अधिक ज्ञान और अज्ञान का विषय है।
गेहूँ की फसल कम होगी, लेकिन वोटों की खेती लहलहायेगी
संजय सिन्हा, आज तक :
मेरी माँ किसान नहीं थी, लेकिन जिस साल अप्रैल के महीने में आसमान में काले-काले बादल छाते और ओले बरसते माँ सिहर उठती थी।
हंसों से सीखें रिश्ते निभाना
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आपने कभी हंसों को उड़ते हुए देखा है?
पौराणिक कहानियाँ जीवन की पाठशाला हैं
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आदमी चाहे तो किसी एक कण से भी जिंदगी में बहुत कुछ सीख सकता है।
मैंने बचपन में सुनी और पढ़ी तमाम कहानियों में से हाथी और मछली की कहानी को जीवन के सार-तत्व की तरह लिया। हालाँकि वहाँ तक पहुँचने के लिए मुझे राजा यदु और अवधूत की मुलाकात की कहानी भी माँ ने ही सुनायी थी।
बेटियों के गुनाहगार
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
राज कपूर की फिल्म ‘प्रेम रोग’ जब मैं देख रहा था, तब मैं स्कूल में रहा होऊंगा।