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ऑड-ईवन की माया
संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :
कल मुझे वैशाली से आनंद विहार स्टेशन जाना था। कहने को आनंद विहार वैशाली से करीब है पर जाना कितना मुश्किल यह कल ही समझ में आया। मेरे टैक्सी वाले ने मना कर दिया। उसके पास ईवन (प्राइवेट) नंबर की गाड़ी (जो मैं लेता हूँ) थी ही नहीं, दूसरा विकल्प ओला टैक्सी होता है। मैं नहीं लेता। सो मैंने बेटे से कहा कि बुक करो तो उसने बताया कि ओला ने घोषित कर रखा है कि माँग औऱ पूर्ति में अंतर के कारण वह ज्यादा किराया वसूलेगा।
गुरु-मंत्र
प्रेमचंद :
घर के कलह और निमंत्रणों के अभाव से पंडित चिंतामणिजी के चित्त में वैराग्य उत्पन्न हुआ और उन्होंने संन्यास ले लिया तो उनके परम मित्र पंडित मोटेराम शास्त्रीजी ने उपदेश दिया- मित्र, हमारा अच्छे-अच्छे साधु-महात्माओं से सत्संग रहा है।
कौशल
प्रेमचंद :
पंडित बालकराम शास्त्री की धर्मपत्नी माया को बहुत दिनों से एक हार की लालसा थी और वह सैकड़ों ही बार पंडितजी से उसके लिए आग्रह कर चुकी थी; किंतु पंडितजी हीला-हवाला करते रहते थे। यह तो साफ-साफ न कहते थे कि मेरे पास रुपये नहीं हैं- इससे उनके पराक्रम में बट्टा लगता था- तर्कनाओं की शरण लिया करते थे।
नेऊर
प्रेमचंद :
आकाश में चांदी के पहाड़ भाग रहे थे, टकरा रहे थे गले मिल रहें थे, जैसे सूर्य मेघ संग्राम छिड़ा हुआ हो। कभी छाया हो जाती थी कभी तेज धूप चमक उठती थी। बरसात के दिन थे। उमस हो रही थी । हवा बदं हो गयी थी।
मृत्यु अटल है, जीवन सकल है
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आज आपको एक न में ले चलता हूँ।
अपने जीवन में मुझे एक बार ओशो से मिलने का मौका मिला।