Thursday, November 21, 2024
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वैचारिक आत्मदैन्य से बाहर आती भाजपा

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय : 

उत्तर प्रदेश अरसे बाद एक ऐसे मुख्यमंत्री से रूबरू है, जिसे राजनीति के मैदान में बहुत गंभीरता से नहीं लिया जा रहा था।

तो उत्तर प्रदेश चुनाव में समाजवादी पार्टी लाई कब्रिस्तान?

अभिरंजन कुमार, वरिष्ठ पत्रकार :

जब मैंने प्रधानमंत्री मोदी से पूछा कि ‘चुनाव के उत्सव में कब्रिस्तान और श्मशान कहाँ से ले आए मोदी जी?’, इसके बाद मेरे पास तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आई हैं। जो प्रतिक्रियाएं मेरे सवाल के साथ सहमति में आईं, उन्हें सामने रखने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उनकी बात तो मैं कह ही चुका हूँ, लेकिन जो प्रतिक्रियाएं असहमति में आईं हैं, उन्हें स्पेस देना भी जरूरी लग रहा है।

फेसबुक के इस्तेमाल

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार  :

गुजरात की मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया पर इस्तीफा दिया। नेता चुन कर आता है जनता द्वारा, पर मुक्ति चाहता है फेसबुक द्वारा। फेसबुक के यूँ कई इस्तेमाल हैं- इस पर कविता, इश्क और इस्तीफा कुछ भी किया जा सकता है। यूँ कई लोग इस्तीफा और इश्क में असमर्थ होते हैं, तो फेसबुक पर कविता का अंबार दिखायी देता है।

अजीत जोगी और अखबार की ताकत

संजय कुमार सिंह, संस्थापक, अनुवाद कम्युनिकेशन :

अखबार की ताकत पर याद आया। जनसत्ता में नौकरी शुरू की थी तो पाया कि दिल्ली में भी बिजली जाती थी और तो और दफ्तर की बिजली भी जाती थी पर अखबार छापने के लिए जेनरेटर नहीं था। मुझे याद नहीं है कि बिजली जाने पर एक्सप्रेस बिल्डिंग की लिफ्ट चलती थी कि नहीं और चलती थी तो कैसे? नहीं चलती थी तो कभी उसका कोई विरोध हुआ।

राजनीति और महात्वाकांक्षा

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

माँ ने लिखा है

 “आज ट्रेन में यात्रा के दौरान मंगनू सिंह जी के बेटे से भेंट हुई। उनके बेटे डॉक्टर वीपी सिंह इस समय एनसीईआरटी, दिल्ली में हैं और आजमगढ़ से जुड़े हैं।

संघ मुक्त भारत का आह्वान : सपने मत देखिए नीतीश बाबू

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

जिस संघ के साथ दशकों नाता रहा, निजी महत्वाकांक्षा में अर्थात प्रधानमंत्री बनने की ललक में, उसी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को पानी पी-पी कर जिस तरह से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कोसते हुए यहाँ तक कह दिया कि देश को संघ मुक्त करने के लिए सभी विपक्षी दल एक हों, उसे वाकई गिरी हरकत कहा जाएगा।

‘बीमार’ मुख्यमंत्री की भाषा

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की दु:साध्य ब्लड शुगर नें कहीं उनके दिमाग पर तो असर नहीं डाल दिया?

आम आदमी पार्टी में कुछ बड़ा होगा

राणा यशवंत :

इस बात के पूरे आसार बन गये हैं कि आप की पॉलिटिकल अफेयर्स कमिटी से योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण का पत्ता साफ होगा। अरविंद केजरीवाल दिल्ली के अब मुख्यमंत्री हैं और आम आदमी पार्टी का कनवेनर पद अब भी उन्हीं के पास है। पार्टी के आंतरिक लोकपाल एडमिरल रामदास की चिट्ठी जो पिछले हफ्ते आई वो इस बात पर सवाल खड़ा करती है।

केजरीवाल और महत्वाकांक्षा

अभिरंजन कुमार :

अरविंद केजरीवाल ने शपथ ग्रहण के बाद जो भाषण दिया, वह बेहद संतुलित और राजनीतिक रूप से परिपक्व था। पिछली बार की गलतियों से सबक लेने और इस बार कुर्सी पर जमे रहने का संकल्प उनके भाषण में दिखा। लालच और अहंकार से बचने का सबक अच्छा है।

क्यों शानदार चुटकुला है “पाँच साल केजरीवाल”!

राजीव रंजन झा : 

केजरीवाल हमेशा अपने लिए नयी मंजिलें तय करते आये हैं। उनकी हर मंजिल की एक मियाद होती है। जब तक उसकी अहमियत होती है, तभी तक वहाँ टिकते हैं। नौकरी तब तक की, जब तक थोड़ा रुतबा हासिल करने के लिए जरूरी थी। एनजीओ तब तक चलाया, जब तक उससे एक सामाजिक छवि बन जाये। आंदोलन तब तक चलाया, जब तक राजनीतिक दल बनाने लायक समर्थक जुट जायें।

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