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मोदी समझ रहे हैं, स्वयंसेवक भी समझें
दीपक शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार :
गरीबी, गुरबत, गाली और गद्दारियों की तोहमतों के बीच कोई कैसे जिये? पंचर जोड़ना, हजामत बनाना, कबाड़ का काम, पुताई का ठेका और कसाई की जिंदगी।
मुलायम की बिसात पर क्या राहुल क्या मोदी
पुण्य प्रसून बाजपेयी, कार्यकारी संपादक, आजतक :
नेताजी से ज्यादा यूपी की राजनीति कोई नहीं समझता। और सियासत की जो बिसात खुद को पूर्वांचल में खड़ा कर नेताजी ने बनायी है, उसे गुजरात से आये अमित शाह क्या समझे और पुराने खिलाड़ी राजनाथ क्या जाने।
तीसरा मोर्चा : कुर्सी ही ब्रह्म है
डॉ वेद प्रताप वैदिक, राजनीतिक विश्लेषक :
तीसरा मोर्चा एक मृग-मरीचिका बन गया है। कभी वह आँखों के आगे नाचने लगता है और कभी वह एकदम अदृश्य हो जाता है। अब फिर कांग्रेस के कुछ शीर्ष नेताओं ने उसे जिंदा किया है।
बीजेपी-मुलायम ही सही मायने में मिले हुए
विकास मिश्रा, आजतक :
बात 1990 की है। इलाहाबाद के सलोरी मुहल्ले में सालाना उर्स था मजार पर। बहुत मजा आ रहा था। कव्वाल झूम झूमकर गा रहे थे।
‘बेटा बन गया, मुझे भी कुछ बनाओ’
अखिलेश शर्मा, वरिष्ठ संपादक (राजनीतिक), एनडीटीवी :
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने कल आजमगढ़ से भी पर्चा भर दिया। वो मैनपुरी से भी चुनाव लड़ रहे हैं।
जनादेश के जश्न से पहले कद्दावर नेताओं की तिकड़म
पुण्य प्रसून बाजपेयी, कार्यकारी संपादक, आजतक :
1977 में देश की सबसे कद्दावर नेता इंदिरा गांधी को राजनारायण ने जब हराया तो देश में पहली बार मैसेज यही गया कि जनता ने इंदिरा को हरा दिया।
मुल्ला मुलायम और सलीम योगेंद्र यादव में फर्क क्या?
विकास मिश्रा, आजतक :
योगेंद्र यादव आम आदमी पार्टी के नेता हैं, बोलते हैं तो जुबां से मिसरी झरती है।