Friday, November 22, 2024
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तब बहुत बदल चुका होगा देश!

कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार :

तीन कहानियाँ हैं! तीनों को एक साथ पढ़ सकें और फिर उन्हें मिला कर समझ सकें तो कहानी पूरी होगी, वरना इनमें से हर कहानी अधूरी है! और एक कहानी इन तीनों के समानान्तर है। ये दोनों एक-दूसरे की कहानियाँ सुनती हैं और एक-दूसरे की कहानियों को आगे बढ़ाती हैं और एक कहानी इन दोनों के बीच है, जिसे अक्सर रास्ता समझ में नहीं आता। और ये सब कहानियाँ बरसों से चल रही हैं, एक-दूसरे के सहारे! विकट पहेली है। समझ कर भी किसी को समझ में नहीं आती!

क्या प्रयास कर रहा है अल्पसंख्यक समुदाय?

जाने-माने हिंदी लेखक और जामिला मिलिया इस्लामिया के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष असग़र वजाहत ने अपनी एक ताजा टिप्पणी से भारत में बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदाय के बीच रिश्तों पर नया सवाल उठाया है। इन सवालों पर उनके विचार क्या हैं और इन्हें उठाने की जरूरत क्यों पड़ी है, इसे समझने के लिए राजीव रंजन झा ने उनसे बातचीत की। 

देश को क्यों बाँट रहा है मीडिया

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय  :

काफी समय हुआ पटना में एक आयोजन में माओवाद पर बोलने का प्रसंग था। मैंने अपना वक्तव्य पूरा किया तो प्रश्नों का समय आया। राज्य के बहुत वरिष्ठ नेता, उस समय विधान परिषद के सभापति रहे स्व.श्री ताराकान्त झा भी उस सभा में थे, उन्होंने मुझे जैसे बहुत कम आयु और अनुभव में छोटे व्यक्ति से पूछा “आखिर देश का कौन सा प्रश्न या मुद्दा है जिस पर सभी देशवासी और राजनीतिक दल एक है?” जाहिर तौर पर मेरे पास इस बात का उत्तर नहीं था। आज जब झा साहब इस दुनिया में नहीं हैं, तो याकूब मेमन की फाँसी पर देश को बँटा हुआ देखकर मुझे उनकी बेतरह याद आयी।

बू अली शाह कलन्दर – दमादम मस्त कलन्दर

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

पानीपत का कलन्दर शाह की दरगाह हिन्दुओं और मुसलमानों के लिए समान रूप से श्रद्धा का केन्द्र है।

मुस्लिम मानसः बात निकली है तो दूर तलक जायेगी

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :

संवाद के अवसर हों, तो बातें निकलती हैं और दूर तलक जाती हैं। मुस्लिम समाज की बात हो तो हम काफी संकोच और पूर्वाग्रहों से घिर ही जाते हैं।

क्यों बढ़ती है मुस्लिम आबादी?

क़मर वहीद नक़वी : 

मुसलमानों की आबादी बाकी देश के मुकाबले तेजी से क्यों बढ़ रही है? क्या मुसलमान जानबूझ कर तेजी से अपनी आबादी बढ़ाने में जुटे हैं? क्या मुसलमान चार-चार शादियाँ कर अनगिनत बच्चे पैदा कर रहे हैं? क्या मुसलमान परिवार नियोजन को इसलाम-विरोधी मानते हैं? क्या हैं मिथ और क्या है सच्चाई? 

देखिए कि क्या दिखता है?

क़मर वहीद नक़वी, वरिष्ठ पत्रकार :

दिल्ली से बगदाद कितनी दूर है? ठीक-ठीक 3159 किलोमीटर। बीच में ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान। किसने सोचा था कि आग वहाँ लगेगी तो आँच तीन देशों को पार करते हुए अपने यहाँ तक आ जायेगी। वैसे तो इराक़ पिछले दस-बारह सालों से युद्ध से झुलस रहा है, लेकिन पहले कभी आज जैसी तपिश महसूस नहीं की गयी।

आजादी के बाद मुसलमानों की अग्नि-परीक्षा !

पुण्य प्रसून बाजपेयी, कार्यकारी संपादक, आजतक :

1952 में मौलाना अब्दुल कलाम आजाद को जब नेहरु ने रामपुर से चुनाव लड़ने को कहा तो अब्दुल कलाम ने नेहरु से यही सवाल किया था कि उन्हें मुस्लिम बहुल रामपुर से चुनाव नहीं लड़ना चाहिये।

भाजपा मुसलमानों से दूर, या मुसलमान भाजपा से दूर?

राजीव रंजन झा :

भाजपा पर यह आरोप रहा है कि वह मुसलमानों से दूरी बनाये रखती है। उसका अब तक का चाल-चरित्र-चेहरा बताता है कि इस आरोप को निराधार नहीं कहा जा सकता।

मोदी, मुसलमान और मधु किश्वर के मधुर किस्से

संजय तिवारी, संपादक, विस्फोट :

सात रेसकोर्स रोड के चौराहे पर अकबर रोड पर दो घर बिल्कुल आमने-सामने हैं।

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