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मृत्यु महासत्य है
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
अपने 'पिता' की अस्थियों को विसर्जित करने के लिए कल मैं गढ़ मुक्तेश्वर के पास ब्रज घाट गया। दिल्ली में गंगा नहीं, जमुना है। पर हमारे यहाँ मान्यता है कि मरने वाले को मुक्ति ही तब मिलती है, जब उसकी अस्थियाँ गंगा में प्रवाहित की जाती हैं।
बेटी ‘उजाला’ और बहू ‘बेरहम’
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
माँ ने बताया था कि जिस दिन मेरा जन्म हुआ था, उस दिन खूब बारिश हो रही थी। सुबह के पांच बजे घर में थाली पर हँसुए की झंकार गूंजी थी। मैं याद करने पर आऊँ तो सब कुछ याद आ सकता है। लेकिन मैं आज अपने जन्मदिन को याद नहीं करना चाहता।
दिल की रानी
प्रेमचंद :
जिन वीर तुर्कों के प्रखर प्रताप से ईसाई-दुनिया काँप रही थी, उन्हीं का रक्त आज कुस्तुन्तुनिया की गलियों में बह रहा है। वही कुस्तुन्तुनिया जो सौ साल पहले तुर्कों के आतंक से आहत हो रहा था, आज उनके गर्म रक्त से अपना कलेजा ठंडा कर रहा है। और तुर्की सेनापति एक लाख सिपाहियों के साथ तैमूरी तेज के सामने अपनी किस्मत का फैसला सुनने के लिये खड़ा है।