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युवा ही लाएंगे हिंदी समय!

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
अब लडाई अंग्रेजी को हटाने की नहीं हिंदी को बचाने की है
सरकारों के भरोसे हिंदी का विकास और विस्तार सोचने वालों को अब मान लेना चाहिए कि राजनीति और सत्ता से हिंदी का भला नहीं हो सकता। हिंदी एक ऐसी सूली पर चढ़ा दी गयी है, जहां उसे रहना तो अंग्रेजी की अनुगामी ही है। आत्मदैन्य से घिरा हिंदी समाज खुद ही भाषा की दुर्गति के लिए जिम्मेदार है।
युवाओं के दिल में

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
विकट अज्ञान और कनफ्यूजन में दिन बीते साहब। पहले एक सर्वे में साफ हुआ था कि भारतीय सन्नी लियोन (वस्त्र मुक्ति अभियान की वरिष्ठ कार्यकर्ता) के दीवाने हैं। मैं तो मान रहा था कि युवाओं के दिल में सन्नी लियोन बसती हैं। पर नहीं, कल मेरे मुहल्ले में बहुत पोस्टर दिखे, जिसमें लिखा था कि देश के युवाओं के दिल में बसने वाले एक नेता को युवाओं की माँग पर आगे लाया गया है।
शिक्षा परिसर राजनीति मुक्त नहीं, संस्कार युक्त हों

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
हमारे कुछ शिक्षा परिसर इन दिनों विवादों में हैं। ये विवाद कुछ प्रायोजित भी हैं, तो कुछ वास्तविक भी। विचारधाराएँ परिसरों को आक्रांत कर रही हैं और राजनीति भयभीत। जैसी राजनीति हो रही है, उससे लगता है कि ये परिसर देश का प्रतिपक्ष हैं। जबकि यह पूरा सच नहीं है।
छात्र आंदोलन : खो गया है रास्ता

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमूला की आत्महत्या की घटना ने हमारे शिक्षा परिसरों को बेनकाब कर दिया है। सामाजिक-राजनीतिक संगठनों में काम करने वाले छात्र अगर निराशा में मौत चुन रहे हैं, तो हमें सोचना होगा कि हम कैसा समाज बना रहे हैं? किसी राजनीति या विचारधारा से सहमति-असहमति एक अलग बात है, किंतु बात आत्महत्या तक पहुँच जाए तो चिंताएँ स्वाभाविक हैं।