Tag: राजनीति
राजनीति के बिगड़े बोल
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
भारतीय राजनीति में भाषा की ऐसी गिरावट शायद पहले कभी नहीं देखी गयी। ऊपर से नीचे तक सड़कछाप भाषा ने अपनी बड़ी जगह बना ली है। ये ऐसा समय है जब शब्द सहमे हुए हैं, क्योंकि उनके दुरूपयोग की घटनाएं लगातार जारी हैं। राजनीति जिसे देश चलाना है और देश को रास्ता दिखाना है,वह खुद गहरे भटकाव की शिकार है।
शहीद नहीं, बलि के बकरे थे रोहित वेमुला और रामकिशन ग्रेवाल!
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
रोहित वेमुला और अब रामकिशन ग्रेवाल - इन दोनों ने कथित रूप से खुदकुशी की। एक आतंकवादी याकूब मेमन का समर्थक था, लेकिन तथाकथित खुदकुशी के बाद उसे दलित चेतना का प्रतीक घोषित कर दिया गया। दूसरा एक पूर्व फौजी था, जिसने कांग्रेस के 10 साल के शासन में orop लागू नहीं होने पर खुदकुशी नहीं की, लेकिन जब यह काफी हद तक लागू हो गया है, तब खुदकुशी कर ली।
‘आप’ की झाड़ू, ‘आप’ पर!
क़मर वहीद नक़वी, पत्रकार :
आम आदमी पार्टी का बनना देश की राजनीति में एक अलग घटना थी। वह दूसरी पार्टियों की तरह नहीं बनी थी। बल्कि वह मौजूदा तमाम पार्टियों के बरअक्स एक अकेली और इकलौती पार्टी थी, जो इन तमाम पार्टियों के तौर-तरीकों के बिलकुल खिलाफ, बिलकुल उलट होने का दावा कर रही थी। उसका दावा था कि वह ईमानदारी और स्वच्छ राजनीतिक आचरण की मिसाल पेश करेगी। इसलिए 'आप' के प्रयोग को जनता बड़ी उत्सुकता देख रही थी कि क्या वाकई 'आप' राजनीति में आदर्शों की एक ऐसी लकीर खींच पायेगी कि सारी पार्टियों को मजबूर हो कर उसी लकीर पर चलना पड़े।
विकास को नए नजरिए से देखे मीडिया
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
मीडिया की ताकत आज सर्वव्यापी है और कई मायनों में सर्वग्रासी भी। ऐसे में विकास के सवालों और उसके लोकव्यापीकरण में मीडिया की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो उठी है। यह एक ऐसा समय है, जबकि विकास और सुशासन के सवालों पर हमारी राजनीति में बात होने लगी है, तब मीडिया में यह चर्चाएँ न हों यह संभव नहीं है।
मोदी राज में कैसे टॉप कर गए दलित और मुस्लिम छात्र?
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
मीडिया से पता चला कि इस बार आइएएस टॉपर दलित है और सेकेंड टॉपर मुसलमान। इससे एक बात तो साफ है कि हमारे लोकतंत्र ने धीरे-धीरे सबको बराबरी से आगे बढ़ने के मौके मुहैया कराये हैं और अब चाहे आप किसी भी जाति-धर्म के हों, अगर आपमें दम है और लक्ष्य के प्रति समर्पित हैं, तो आपको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।
‘हुआ-हुआ’ करने वालों के अच्छे दिन आ गये
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
रातों-रात पीएम बनने की महत्वाकांक्षा के चलते 49 दिन की तुगलकी सरकार से भाग कर जो शख्स भस्मासुर की तरह अपने ही सिर पर हाथ रख कर (राजनीतिक रूप से) मर चुका था, उसे बीजेपी के बौराए रणनीतिकारों ने अमृत छिड़क कर दोबारा जिला दिया, लेकिन अब भी उन्हें चेतना नहीं आयी है।
राजनीति और महात्वाकांक्षा
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
माँ ने लिखा है
“आज ट्रेन में यात्रा के दौरान मंगनू सिंह जी के बेटे से भेंट हुई। उनके बेटे डॉक्टर वीपी सिंह इस समय एनसीईआरटी, दिल्ली में हैं और आजमगढ़ से जुड़े हैं।
ग्रामोदय से भारत उदयः कितना संकल्प, कितनी राजनीति
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय : :
क्या नरेंद्र मोदी ने भारत के विकास महामार्ग को पहचान लिया है या वे उन्हीं राजनीतिक नारों में उलझ रहे हैं, जिनमें भारत की राजनीति अरसे से उलझी हुयी है। गाँव, गरीब, किसान इस देश के राजनीतिक विमर्श का मुख्य एजेंडा रहे हैं। इन समूहों को राहत देने के प्रयासों से सात दशकों का राजनीतिक इतिहास भरा पड़ा है। कर्ज माफी से ले कर अनेक उपाय किए गये, किंतु हालात यह हैं कि किसानों की आत्महत्याएँ एक कड़वे सच की तरह सामने हैं।
कुछ बातें ‘भारत माता की जय’ न बोलने वालों से !
संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय :
देश की आजादी के सात दशक बाद वंदेमातरम् गाएँ या न गाएँ, ‘भारत माता की जय’ बोलें या न बोलें इस पर छिड़ी बहस ने हमारे राजनीतिक विमर्श की नैतिकता और समझदारी दोनों पर सवाल खड़े कर दिये हैं। आजादी के दीवानों ने जिन नारों को लगाते हुए अपना सर्वस्व निछावर किया, आज वही नारे हमारे सामने सवाल की तरह खड़े हैं। देश की आजादी के इतने वर्षों बाद छिड़ी यह निरर्थक बहस कई तरह के प्रश्न खड़े करती है। यह बात बताती है राजनीति का स्तर इन सालों में कितना गिरा है और उसे अपने राष्ट्रीय स्वाभिमान से समझौता करने में भी गुरेज नहीं है। लोकतंत्र इस मामले में हमें इतना दयनीय बना देगा, यह सोच कर दुख होता है।
कांग्रेस की सांप्रदायिक और देशद्रोही राजनीति का रिजल्ट है एनआईटी की घटना
अभिरंजन कुमार, पत्रकार :
हैदराबाद विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला और उसके साथियों ने मुम्बई धमाकों के गुनहगार याकूब मेमन के समर्थन में कार्यक्रम किये, लेकिन कांग्रेस और कम्युनिस्टों ने पूरे मामले को जातीय रंग दे कर उन लोगों को हीरो बना दिया।