Thursday, November 21, 2024
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प्रचंड जनादेश का ईवीएम की ओट में अपमान मत कीजिए

पद्मपति शर्मा, वरिष्ठ खेल पत्रकार :

ईवीएम मशीन पर छेड़छाड़ का आरोप यूपी, उत्तराखंड के जनादेश का क्या अपमान नहीं ? विरोध करने वाले वही हैं जो देश में वर्षों से लूटखसोट में लिप्त रहे हैं। अपना भाड़ सा मुँह खोल कर हर दिन कांग्रेस की टीआरपी गिराने वाले दिग्गी

राजनीतिक दलों को पुरानी छूट पर नया बवाल

राजीव रंजन झा :

अचानक एक खबर आयी और नोटबंदी का विरोध करने वाले चेहरे मानो जीत के एहसास से खिल उठे - देखो, हम कहते थे ना कि काला धन रखने वाले नेताओं का कुछ नहीं बिगड़ेगा।

तेरे ‘मासूम’ सवालों से हैरान हूँ मैं

राजीव रंजन झा : 

मध्य प्रदेश की भोपाल जेल से भागे आठ आतंकवादियों की मुठभेड़ में हुई मौत के बाद तमाम राजनीतिक दल और कथित रूप से उदार विचारधारा वाले लोगों की तरफ से सवालों की बौछार शुरू हो गयी है। सवाल पूछने वालों की नीयत चाहे जो भी हो, मध्य प्रदेश सरकार को इन सवालों के जवाब जरूर देने चाहिए।

कैसे बने दलितों के मसीहा

राकेश उपाध्याय, पत्रकार:

यदि राजनीतिक दल अपने मताग्रहों को देश से ऊपर रखेंगे तो हमारी स्वतंत्रता संकट में पड़ जाएगी और संभवत: वह हमेशा के लिए खो जाए। इसलिए हम सबको दृढ़ संकल्प के साथ इस संभावना से बचना है। हमें अपने खून की आखिरी बूंद तक अपने महान देश की स्वतंत्रता की रक्षा करनी है। -डॉ. भीमराव अंबेडकर, संविधान सभा में दिए गये भाषण का हिस्सा...

याकूब मेमन और एक सवाल!

कमर वहीद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार:

याकूब मेमन को तो फाँसी हो चुकी। बहस जारी है और शायद अभी यह बहस जारी रहे। बहुत-सारी बातें हो चुकी हैं। मजहबी रंग की बातें हो चुकी हैं, राष्ट्रवादी जुमलों की तोपें चल चुकी हैं, कानूनी दाँव-पेंच हो चुके हैं। फिर भी बहस अभी जारी है कि याकूब को फाँसी होनी चाहिए थी या नहीं? लोगों के अपने-अपने निष्कर्ष हैं, जिससे वे डिगना नहीं चाहते। 

राजनीति में शुचिता के सवाल

संजय द्विवेदी, अध्यक्ष, जनसंचार विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय : 

राजनीति में शुचिता और पवित्रता के सवाल अब हवा हो गये लगते हैं। जोर अब सादगी, शुचिता और ईमानदारी पर नहीं है। आप हमसे अधिक भ्रष्ट हैं, यह कहकर अपने पाप कम करने की कोशिशें की जा रही हैं। समाज इस नजारे को भौंचक होकर देख रहा है। देश के हर राज्य में ऐसी कहानियाँ पल रही हैं और राजनीति व नौकरशाही दोनों इसे विवश खड़े देख रहे हैं। भ्रष्टाचार की तरफ देखने का हमारा दृष्टिकोण चयनित है। हमारे और तुम्हारे लोगों की जंग में देश छला जा रहा है।

इस ‘ड्रमेटिक्स’ से आगे देखिए!

कमर वहीद नकवी , वरिष्ठ पत्रकार 

देश में बहुत कुछ हो रहा है। मोदी सरकार के एक साल पूरे होने वाले हैं। बड़ी तीखी बहस हो रही है इस पर।

चुनावी परिदृश्य में छाये हैं सर्वेक्षण, लापता है जनता

संदीप त्रिपाठी : 

दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार एक बड़े मंच पर चल रहा राजनीतिक प्रहसन बन चुका है। इसमें मुख्य कलाकार राजनीतिक दलों के नेता और निजी न्यूज चैनल व मीडिया बने हुये हैं। अगर कोई परिदृश्य से गायब है तो वह जनता है।

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