Sunday, June 8, 2025
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शुभस्थ शीघ्रम्

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मुश्किल ये है कि हम लोग अपनी जिन्दगी एक धारणा पर जीते चले जाते हैं। हम मान लेते हैं कि जो अच्छा है, उसी की बातें सुननी हैं। हम बहुत सी उन विद्याओं पर अमल नहीं करते, जिनके विषय में हमारे मन में बुरी भावनाएँ होती हैं, या जिनकी छवि ठीक नहीं होती। 

सब कुछ हार जाओ, पर भरोसा नहीं हारना चाहिए

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

रावण हंस रहा था। खुशी के मारे उछल-उछल कर हंस रहा था।

"सीता, तुम्हें बहुत घमंड था न अपने राम पर। तुम इतराती थी न अपने देवर लक्ष्मण की शक्ति पर! जाओ खुद अपनी आँखों से देखो। देखो कैसे तुम्हारे पति राम और तुम्हारे देवर लक्ष्मण, दोनों हमारे पुत्र इंद्रजीत के हाथों मारे गये। हमारे पुत्र ने उन्हें सर्पबाणों से भेद दिया है।

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