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अपना लाइक उर्फ अपनी लाइफ

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
किसी वेबसाइट से खरीदारी करनेवाले जानते हैं कि कोई आइटम वहाँ से खरीदकर लौटना आसान नहीं होता, खरीदारी के फौरन बाद वेबसाइट बताती है कि जिन्होने आप जैसे ये सामान खऱीदा था, उन्होने ये, ये और ये भी खरीदा था, ये, ये आइटम लाइक किये थे।
फेसबुक का लाइकाचार

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
जी मैं पुराने स्कूल का हूँ, कई महिला मित्र फेसबुक पर प्रोफाइल पिक अपडेट करती हैं, पर मैं उन्हे लाइक नहीं करता, मतलब लाइक करने का मन हो तो भी लाइक के सिंबल को क्लिक ना करता। सुंदर, बहुत स्मार्ट लिखने का दिल करता है, पर, पर उन्ही महिला मित्रों को बाक्सर भाई भी मेरे मित्र हैं, जो बरसों यह उद्घोषणा करते आ रहे हैं कि उनकी बहन की ओर आँख उठाकर भी किसी ने देखा तो उसे खल्लास कर देंगे। किसी महिला मित्र की फोटो को लाइक करने की इच्छा की क्षणों में वह बाक्सर भाई यह कहता दिख जाता है-अच्छा बेट्टे, मेरी बहन की तरफ ना सिर्फ तूने आँख उठाकर देखा, बल्कि उसे लाइक तक किया, आज निकलियो घर से।
पराये मर्द का लाइक

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार
शिष्टाचार अलग है और फेसबुक का शिष्टाचार अलग है।