Friday, November 22, 2024
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गिफ्ट उल्लास है, गिफ्ट हर्ष है

विकास मिश्रा, आजतक  : 

12 साल पहले की बात है। ठंड का सीजन था। मेरठ में 4-5 साल की एक बच्ची का जन्मदिन था, परिवार ने बड़े प्यार से बुलाया था। घर में बात चल रही थी कि गिफ्ट में क्या दिया जाए। गेम या ड्रेस, खिलौना या टैडी बीयर या फिर ढेर सारी चॉकलेट।

पोर्न साइट्स का ज्ञान

विकास मिश्रा, आजतक  : 

तब मेरी उम्र करीब 9-10 साल रही होगी। घर में बड़े भइया की पहली संतान का जन्म हुआ था। बेटा हुआ था और ये खबर मुझे स्कूल में मिली थी। उससे पहले हमें पता तक नहीं था कि भाभी संतान को जन्म देने वाली हैं। घर पहुँचे तो खुशियाँ अपरम्पार।

ताकतवर अक्षय को यूँ हार्ट अटैक आना

विकास मिश्रा, आजतक  :

दफ्तर में मेरी ठीक बायीं तरफ की सीट खाली है। ये अक्षय की सीट है। अक्षय अब इस सीट पर नहीं बैठेगा, कभी नहीं बैठेगा। दराज खुली है। पहले खाने में कई खुली और कई बिन खुली चिट्ठियाँ हैं, जो सरकारी दफ्तरों से आयी हैं, इनमें वो जानकारियाँ हैं, जो अक्षय ने आरटीआई डालकर माँगी थीं। 

दलित हो तो दावत खिलाओ

विकास मिश्रा, आजतक 

रामभरोसे दरवाजा खोलो, मैं नेता सुर्तीलाल। 

रामभरोसे - नेताजी आज गरीब के घर का रास्ता कैसे भूल गये। 

कोई वादा किया हैं तो पूरा कीजिए

विकास मिश्रा, आजतक :

एक आदमी ने नारियल के पेड़ पर ढेर सारे फल लगे देखा तो जोश में पेड़ पर चढ़ गया। पेड़ बहुत ऊंचा था, लेकिन उस आदमी के जोश से थोड़ा कम। उसने नारियल तोड़ कर नीचे फेंके और जब उतरने की बारी आयी तो नीचे देखा तो डर के मारे काँपने लगा।

रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून

विकास मिश्रा, आजतक  : 

इलाहाबाद में जब पढ़ता था तो शुरुआत में केपीयूसी हॉस्टल में रहा। पीने का पानी भरने के लिए नीचे जाना पड़ता था। मटके में पानी भरकर रखते थे, लेकिन कई बार झंझट से बचने के लिए टंकी का पानी पी लिया करते थे। ये सिर्फ मेरी ही बात नहीं थी, ज्यादातर लोग टंकी का ही पानी पीते थे।

थाली साफ करना

विकास मिश्रा, आजतक  : 

मेरे पिताजी खाने की थाली में कुछ नहीं छोड़ते। खाने के बाद थाली बिल्कुल साफ। अगर परोसने में रोटी जमीन पर गिर जाती है तो उसे उठाकर वे थाली में रख लेते हैं।

सियासत की गलियों से अलविदा हो जायेंगे मनमोहन?

विकास मिश्रा, आजतक :

मनमोहन सिंह अब कभी किसी सियासी मंच पर नजर नहीं आयेंगे। नेपथ्य से निकलकर अचानक सियासत के मंच पर आये थे और देश के सबसे बड़े पद तक पहुँचे।

बीजेपी-मुलायम ही सही मायने में मिले हुए

विकास मिश्रा, आजतक :

बात 1990 की है। इलाहाबाद के सलोरी मुहल्ले में सालाना उर्स था मजार पर। बहुत मजा आ रहा था। कव्वाल झूम झूमकर गा रहे थे।

मुल्ला मुलायम और सलीम योगेंद्र यादव में फर्क क्या?

विकास मिश्रा, आजतक :

योगेंद्र यादव आम आदमी पार्टी के नेता हैं, बोलते हैं तो जुबां से मिसरी झरती है।

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