Tag: विवाह
शादी की बंजर भूमि पर प्यार के फूल खिलाओ
संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
एक पिता और पुत्र ट्रेन में सफर कर रहे थे। पिता पुत्र से कहता नंबर तीन और दोनों जोर-जोर से हँसने लगते। दोनों की हँसी थमती और फिर पुत्र कहता नंबर सात। पुत्र के मुँह से नंबर सात निकला नहीं कि दोनों पेट पकड़ कर हँसने लगते।
त्याग करती हैं महिलाएँ
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
भोपाल के हमीदिया कॉलेज में इतिहास वाले प्रोफेसर इंग्लैंड का इतिहास पढ़ाते हुए जब कभी महारानी एलिजाबेथ प्रथम के विषय में हमें बताते तो, उनकी दिलचस्पी ये बात बार-बार बताने में रहती कि एलिजाबेथ ने दुनिया के तमाम राजाओं को इस बात का झाँसा दे रखा था कि वो उन्हीं से विवाह करेंगी, पर महारानी ने कभी किसी से विवाह नहीं किया। यानी वो आजीवन अविवाहित रहीं।
नरक का मार्ग
प्रेमचंद :
रात 'भक्तमाल' पढ़ते-पढ़ते न जाने कब नींद आ गयी। कैसे-कैसे महात्मा थे जिनके लिए भगवत्-प्रेम ही सबकुछ था, इसी में मग्न रहते थे। ऐसी भक्ति बड़ी तपस्या से मिलती है। क्या मैं यह तपस्या नहीं कर सकती? इस जीवन में और कौन-सा सुख रखा है? आभूषणों से जिसे प्रेम हो वह जाने, यहाँ तो इनको देखकर आँखें फूटती हैं; धन-दौलत पर जो प्राण देता हो वह जाने, यहाँ तो इसका नाम सुनकर ज्वर-सा चढ़ आता है। कल पगली सुशीला ने कितनी उमंगों से मेरा शृंगार किया था, कितने प्रेम से बालों में फूल गूँथे थे। कितना मना करती रही, न मानी।
नया विवाह
प्रेमचंद :
हमारी देह पुरानी है, लेकिन इसमें सदैव नया रक्त दौड़ता रहता है। नये रक्त के प्रवाह पर ही हमारे जीवन का आधार है। पृथ्वी की इस चिरन्तन व्यवस्था में यह नयापन उसके एक-एक अणु में, एक-एक कण में, तार में बसे हुए स्वरों की भाँति, गूँजता रहता है और यह सौ साल की बुढ़िया आज भी नवेली दुल्हन बनी हुई है।
बालक
प्रेमचंद :
गंगू को लोग ब्राह्मण कहते हैं और वह अपने को ब्राह्मण समझता भी है। मेरे सईस और खिदमतगार मुझे दूर से सलाम करते हैं। गंगू मुझे कभी सलाम नहीं करता। वह शायद मुझसे पालागन की आशा रखता है। मेरा जूठा गिलास कभी हाथ से नहीं छूता और न मेरी कभी इतनी हिम्मत हुई कि उससे पंखा झलने को कहूँ। जब मैं पसीने से तर होता हूँ और वहाँ कोई दूसरा आदमी नहीं होता, तो गंगू आप-ही-आप पंखा उठा लेता है; लेकिन उसकी मुद्रा से यह भाव स्पष्ट प्रकट होता है कि मुझ पर कोई एहसान कर रहा है और मैं भी न-जाने क्यों फौरन ही उसके हाथ से पंखा छीन लेता हूँ।
गिला
प्रेमचंद :
जीवन का बड़ा भाग इसी घर में गुजर गया, पर कभी आराम न नसीब हुआ। मेरे पति संसार की दृष्टि में बड़े सज्जन, बड़े शिष्ट, बड़े उदार, बड़े सौम्य होंगे; लेकिन जिस पर गुजरती है वही जानता है।
स्वामिनी
प्रेमचंद :
शिवदास ने भंडारे की कुंजी अपनी बहू रामप्यारी के सामने फेंककर अपनी बूढ़ी आँखों में आँसू भरकर कहा- बहू, आज से गिरस्ती की देखभाल तुम्हारे ऊपर है। मेरा सुख भगवान से नहीं देखा गया, नहीं तो क्या जवान बेटे को यों छीन लेते! उसका काम करने वाला तो कोई चाहिए। एक हल तोड़ दूँ, तो गुजारा न होगा। मेरे ही कुकरम से भगवान का यह कोप आया है, और मैं ही अपने माथे पर उसे लूँगा। बिरजू का हल अब मैं ही संभालूँगा। अब घर की देख-रेख करने वाला, धरने-उठाने वाला तुम्हारे सिवा दूसरा कौन है? रोओ मत बेटा, भगवान की जो इच्छा थी, वह हुआ; और जो इच्छा होगी वह होगा। हमारा-तुम्हारा क्या बस है? मेरे जीते-जी तुम्हें कोई टेढ़ी आँख से देख भी न सकेगा। तुम किसी बात का सोच मत किया करो। बिरजू गया, तो अभी बैठा ही हुआ हूँ।
मन की कमजोरी
संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
“आओ संजू, मेरे पास बैठो।”
माँ मुझे पास बुला कर मेरा सिर सहला रही थी।
पाकिस्तान : हिंदू लड़की से शादी करना होगा मुश्किल
संजय तिवारी, संपादक, विस्फोट :
पाकिस्तान की नवाज शरीफ सरकार एक पाकिस्तान के हिंदुओं की सुरक्षा की दिशा में एक ऐसी पहल करने जा रही है जिसके बाद कम से कम हिंदू लड़कियों को सामाजिक सुरक्षा मिले न मिले लेकिन कुछ हद तक कानूनी सुरक्षा जरूर मिल सकेगी।