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सवा सेर गेहूँ
प्रेमचंद :
किसी गाँव में शंकर नाम का एक कुरमी किसान रहता था। सीधा-सादा गरीब आदमी था, अपने काम-से-काम, न किसी के लेने में, न किसी के देने में। छक्का-पंजा न जानता था, छल-प्रपंच की उसे छूत भी न लगी थी, ठगे जाने की चिन्ता न थी, ठगविद्या न जानता था, भोजन मिला, खा लिया, न मिला, चबेने पर काट दी, चबैना भी न मिला, तो पानी पी लिया और राम का नाम लेकर सो रहा। किन्तु जब कोई अतिथि द्वार पर आ जाता था तो उसे इस निवृत्तिमार्ग का त्याग करना पड़ता था। विशेषकर जब साधु-महात्मा पदार्पण करते थे, तो उसे अनिवार्यत: सांसारिकता की शरण लेनी पड़ती थी। खुद भूखा सो सकता था, पर साधु को कैसे भूखा सुलाता, भगवान् के भक्त जो ठहरे !
रावण ने दी रुद्र को शंकर की उपाधि
अविनाश दास, पत्रकार :
इन दिनों श्रावण मास चल रहा है और आज शिवरात्रि भी है। संयोग से कल मैंने वयं रक्षाम: का वह अध्याय पढ़ा, जिसमें विश्रवा मुनि के योद्धा पुत्र रावण ने यम के पौत्र और धर के पुत्र रुद्र से युद्ध की याचना की थी।