Tag: संजय सिन्हा
अफसोस

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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मैंने कल लिखा था कि दिल्ली के मैक्स अस्पताल में एक बेटी अपने पिता के ऑपरेशन के बाद उनकी तस्वीर अपने भाई को भेजना चाहती थी, जो अमेरिका में रहता है। उसका सोचना था कि भाई वहाँ परेशान होगा और पिता की तस्वीर देख कर बहुत खुश होगा। पर डॉक्टर ने उसे पिता से बात कराने की ही अनुमति दे दी।
बेटियों से उजाला होता है

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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अपने एक परिचित का हालचाल पूछने के लिए मुझे कल दिल्ली के मैक्स अस्पताल में जाना पड़ा। वहाँ ऑपरेशन थिएटर के पास मैं अपने परिचित के बाहर आने का इंतजार कर रहा था। एक-एक कर कई मरीज स्ट्रेचर पर बाहर लाये जा रहे थे। मैं सभी मरीजों और उनके परिजनों को गौर से देखता। जैसे ही कोई मरीजा बाहर आता, उनके परिजनों के चेहरे खिल उठते। डॉक्टर बाहर आकर पूछता कि क्या आप फलाँ के साथ हैं?
आ अब लौट चलें

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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सबको एक दिन घर लौटना होता है। भाग्यशाली होते हैं वो लोग, जिन्हें घर के बारे में पता होता है। मैं तो बहुत से लोगों से मिला हूँ, उन्हें पता ही नहीं कि उनका घर कहाँ है। वो हर रात सोते हैं, फिर सुबह होते ही भटकने लगते हैं, अपने घर की तलाश में। वो जिन्दगी जीने की तैयारी में अपने हिस्से की ढेर सारी जिन्दगी जाया कर चुके हैं।
इंसान सोच से ऊँचा होता है

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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पोप जॉन पॉल द्वितीय 1999 में भारत यात्रा पर आये थे। मैं उन दिनों जी न्यूज में रिपोर्टिंग करता था और मेरी ड्यूटी पोप के साथ लगायी गयी थी। पोप अपनी दिल्ली यात्रा में पालम स्थित सेना हवाई अड्डे पर उतरे थे और वहीं से मेरी रिपोर्टिंग शुरू हुई थी। सफेद लिबास में लिपटे, सिर पर छोटी सी टोपी लगाए पोप अपने विशेष विमान से दिल्ली पहुँचे थे।
प्रेम की एक ही भाषा

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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कोई इटली जाए और संसार की सबसे दर्द भरी प्रेम कहानी की आहट न सुन सके तो यह उसकी किस्मत का दोष है।
मौन और मुस्कुराहट

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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नीरो कभी बाँसुरी नहीं बजाता था। उसे बाँसुरी बजानी भी नहीं आती थी। जिसे बाँसुरी बजानी आयेगी, वह नीरो नहीं हो सकता।
जीओ और जीने दो

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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मेरे मन में हमेशा से था कि अगर मैं कभी इटली आया तो कोलेजियम जरूर जाऊँगा, जहाँ ईसा पूर्व कई सौ वर्ष पहले बने उस स्टेडियम में जरूर जाऊँगा, जहाँ ग्लैडिएटर्स कहे जाने वाले योद्धा जमींदारों की मौज के लिए मरने को लड़ते थे। मैं इटली के रोम आया तो शहर के बीच मौजूद पवित्र देश वैटिकन की यात्रा पर सबसे पहले पहुँचा, फिर मैं उस कब्रगाह में भी गया, जहाँ पहली और दूसरी सदी में मसीहियों के शवों को दफनाया जाता था। जमीन से कई मंजिल नीचे बने इस कब्रगाह की कहानी बेहद दिलचस्प है, लेकिन अभी मैं आपको अपने साथ लिए चलता हूँ उस स्टेडियम में, जिसमें दरअसल रोम शहर का रोम-रोम बसा है।
कब जीना शुरू करेंगे

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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मेरे एक दोस्त के पिताजी ने मुझे बताया था कि उनके किसी मित्र ने रिटायरमेंट के बाद बिहार में पेंशन पाने के लिए न सिर्फ अपने कई जोड़े जूते घिस दिये, बल्कि उन्हें अपना हुलिया तक बदलवाना पड़ा। पूरी कहानी लिखूँगा लेकिन पहले आपको अपने साथ आज इटली की सैर कराऊँगा।
दूसरी बड़ी सभ्यता रोम

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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जब आप मेरी पोस्ट पढ़ रहे होते हैं, मैं सातवें आसमान की सैर कर रहा होता हूँ। आप एक-एक पंक्ति पढ़ते हैं और मैं उस आसमान से आपके चेहरे की मुस्कुराहट को महसूस करता हूँ। फिर आप लाइक बटन दबाते हैं और मैं खुशी के मारे आसमान में ही नृत्य करने लगता हूँ। यही है प्यार।
पैसा और शांति

 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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मेरी एक परिचित इन दिनों बहुत परेशान है और मुझसे मदद चाहती हैं। मैं दिल से उनकी मदद करना चाहता हूँ, लेकिन कुछ कर नहीं पा रहा।



 संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
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